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चांद और धरती के बीच

१३ फ़रवरी २०१४

इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म हो जाए तो छात्रों के पास शोध का विकल्प है. श्टुटगार्ट में यूरोप की सबसे बड़ी एरोस्पेस फैकल्टी कुछ नया पेश कर रही है.

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Menschen und Natur im Nordiran
तस्वीर: Mary At

इस प्रयोगशाला में एक फ्लाइट सिमुलेटर ऐसा बनाया गया है जिसमें जीरो ग्रैविटी का अनुभव किया जा सकता है. गुरुत्वाकर्षण के अभाव में शरीर कैसे काम करता है, उसकी प्रतिक्रिया क्या होती है और क्या क्या परेशानियां हो सकती हैं. श्टुटगार्ट की यूनिवर्सिटी में अंतरिक्ष में भारहीनता पर शोध करने वाले आंद्रेयास होर्निग बताते हैं, "हमारी समझ की कुछ सीमाएं हैं. मैं इन सीमाओं को लांघना चाहता हूं, देखना चाहता हूं और साबित करना चाहता हूं कि आप वहां तक पहुंच सकते हैं. मैं दिखाना चाहता हूं कि हां, हमने कर दिखाया. अब हम और शोध करेंगे और दूसरी सीमा तक पहुंचेंगे, हम खुद को उकसाना और अपनी काबिलियत आजमाना चाहते हैं."

आंद्रेयास चांद पर जाना चाहते हैं. वह चांद और पृथ्वी के बीच एक संपर्क सैटेलाइट स्थापित करना चाहते हैं, एक ऐसी जगह पर जहां ऊर्जा की खपत सबसे कम हो. लेकिन ये काम इतना आसान भी नहीं है. इस सैटेलाइट के लिए कक्षा ढूंढनी होगी और कुछ जटिल फॉर्मूलों का इस्तेमाल करना होगा. यह एक एक बड़ी चुनौती है."मुझे यह काम अच्छा लगता है क्योंकि इसमें कई क्षेत्रों पर अध्ययन हो सकता है. मैं ऑर्बिट मेकैनिक्स पर ध्यान दे सकता हूं, मैं संपर्क पर शोध कर सकता हूं. मैं सेटेलाइट को पूरी तरह अलग कर सकता हूं, जो मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई में सीखा है और जो मुझे पसंद हैं."

चांद और पृथ्वी उपग्रहों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इन दोनों के बीच कुछ ही जगह ऐसी होती हैं जहां ग्रह और उपग्रह का गुरुत्वाकर्षण संतुलन में होता है.इस जगह पर उपग्रह बिना किसी ऊर्जा के अपना स्थान बनाए रख सकता है और सिग्नल भेज सकता है. इससे चांद पर स्टेशन बनाने के लिए रोबोट्स को आदेश भी दे सकते हैं. "चांद के क्रेटर यानी गड्ढे के अंदर अगर मैं दाईं या बाईं तरफ से झांकना चाहूं तो गड्ढे के कोने वाला हिस्सा मेरी आंखों के सामने आ जाएगा. लेकिन अगर मेरे पास सैटेलाइट हो जो ऊपर से देख सके तो मैं पूरा क्रेटर देख सकता हूं. मैं इस क्रेटर में एक प्रोब या लैंडर या रोबोट भेजना चाहता हूं. लेकिन साथ ही डाटा भी जमा करना होगा. नहीं तो रोबोट को दोबारा गड्ढे में घुसना होगा. कभी कभी ऐसा संभव नहीं होता, इसलिए पहले रोबोट डाटा भेजता है फिर उसे ऊपर लाया जाता है. फिर चाहे जो हो." यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईएसए चांद के दक्षिणी ध्रुव पर रोबोट भेजना चाहती है. वहां के गड्ढों में पानी है. लेकिन प्रोजेक्ट को अचानक रोक दिया गया है और चांद पर शोध करने वाले आंद्रेयास काफी निराश हैं. पर उन्होंने अभी हार नहीं मानी है. "चांद पर शोध इतना मजेदार है और शोध के आयाम इतने बड़े हैं. मैं चांद से विदा नहीं लूंगा और वैसे भी, किसी को भी ऐसा नहीं करना चाहिए. मुझे लगता है कि यह एक बहुत दिलचस्प विषय है. और इसमें कुछ होना चाहिए. अब यह चाहे आने वाले पांच सालों में हो या दस सालों में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता."

एक साल पहले आंद्रेयास ने कोन्स्टेलेशन नाम का प्रोग्राम विकसित किया. वह घरेलू कंप्यूटर को एक नेटवर्क से जोड़ते हैं जिससे कंप्यूटर के काम में मदद मिले. इस नेटवर्क में 10,000 कंप्यूटर हैं. क्या पता, शायद इससे सैटेलाइट के लिए सही कक्षा और डिजाइन का पता लगाया जा सके. "मैं सैटेलाइट डिजाइन करना चाहता हूं. उसके ऑर्बिट तक सीमित नहीं रहना चाहता. मैं यह बताने की हालत में होना चाहता हूं कि सैटेलाइट कितना भारी होगा, ताकि मैं कह सकूं कि इससे भारी नहीं बनाया जा सकता, नहीं तो मेरा फॉर्मूला काम नहीं करेगा. फिर मैं कह सकता हूं, कि पांच टन भारी सैटेलाइट में एक टन से भारी सोलर पैनेल नहीं हो सकता. इससे बाकी सब सिस्टमों के लिए ऊर्जा आ सकती है."

श्टुटगार्ट विश्वविद्यालय में एरोस्पेस के हर विभाग में काम करने वाले वर्किंग ग्रुप्स मौजूद हैं. आंद्रेयास अपने सपने यहीं पूरा करना चाहते हैं.

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन
संपादनः आभा मोंढे