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तन और मन की पाठशाला सर्कस स्कूल

२० फ़रवरी २०१४

स्मार्टफोनों की दुनिया में सर्कस गुजरे जमाने की बात लगती है. किसी के पास सर्कस देखने का समय नहीं और सर्कस भी खुद भी कम हो गए हैं. लेकिन जर्मनी और यूरोप में सर्कस एक खास अंदाज में बच्चों को जिंदादिली के गुर सिखा रहा है.

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Weiblicher Clown Karneval
तस्वीर: Fotolia/ Andreas Gradin

एक साथ तीन गेंदों से खेलते दो हाथ, गेंदों का पीछा करती दो आंखें और इस सबके पीछे तेजी से दौड़ता एक दिमाग. जगलिंग करना कोई आसान काम नहीं है. इसके लिए शारीरिक और मानसिक अभ्यास की जरूरत पड़ती है, लेकिन बच्चे इसमें ज्यादा कुशल होते हैं. बॉन के डॉन मेलोनी सर्कस स्कूल में बच्चे खेलते कूदते ये गुर सीखते हैं.

सात साल की एमेली यहां पहली बार आई है. शुरुआत में वो थोड़ा शर्मा रही है और हैरान भी है. उसके सामने टाइट रोप यानी रस्सी बंधी हैं. चार हमउम्र बच्चे उसके आगे खड़े हैं. एमेली को पता है कि नंबर आने उसे क्या करना है. ट्रेनर श्टेफी श्रुफ एमिली के बाएं हाथ को पकड़ती हैं और बच्ची रस्सी पर डगमग ढंग से चलना शुरू कर देती है. बीचों बीच पहुंचने पर उसे रस्सी पर दोनों पैर मोड़ कर बैठना है. ट्रेनर की मदद से वो ऐसा कर लेती है, लेकिन डर डरकर. कोने में खड़े एमेली के पिता भी अपनी बेटी की हौसला अफजाई कर रहे हैं.

खेल खेल में कसरत

डॉन मेलोनी सर्कस स्कूल में हर हफ्ते करीब 200 बच्चे आते हैं. जर्मनी में फिलहाल ऐसे 350 सर्कस स्कूल हैं. दुनिया भर में ये संख्या करीब 4,000 है. सभी स्कूलों में ट्रेनिेंग वॉर्म अप और स्ट्रेचिंग के बाद शुरू होती है. इसके बाद डॉन मेलोनी स्कूल में ट्रेनर योर्ग निच बच्चों को मल्टी टास्किंग के गुर सिखाते हैं. 23 साल से यह स्कूल चला रहे निच, बच्चों की पसंद से भी वाकिफ हैं. स्कूल के संस्थापक निच कहते हैं, "बच्चे यहां पहली बार बड़ा हॉल या रस्सी देखकर हैरान हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि वो ये कभी नहीं कर पाएंगे. लेकिन जब वे रस्सी पर ठीक ढंग से चलते हैं तो उनके मां बाप उनका हौसला बढ़ाते हैं. इससे उनमें आत्मविश्वास भरता है. धीरे धीरे वो बॉल पर चलना या ट्रैपीज पर झूलना भी सीखते हैं और खुश हो जाते हैं."

हाथों के बल पल्टियां खाते, हिलती डुलती बड़ी बॉल पर रस्सी कूद करते, पर्दों जैसे कपड़े से लटककर हवा में गजब की मुद्राएं बनाते या फिर एक पहिए की साइकिल में ताली बजाते और चक्कर लगाते बच्चे, ये यहां रोज का नजारा है. निच के मुताबिक ट्रेनिंग के दौरान बच्चे बिना जाने अपने भीतर छुपे डर की सीमा तोड़ने लगते हैं. वो शारीरिक रूप से खेल रहे होते हैं लेकिन उनका दिमाग लगातार मुश्किल हालात में कैसे काम किया जाए, ये सीखता रहता है.

Circus Sonnenstich
सर्कस सोनेनश्टिश नाम के समूह में ऐसे खास बच्चे हैं जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित हैं.तस्वीर: Sandra Schuck/Circus Sonnenstich

मानसिक रूप से मजबूत

बच्चों को शुरुआती ट्रेनिंग देने वाली श्टेफी कहती हैं, "बच्चे ट्रेनिंग के दौरान बड़े एकाग्र होते हैं. वे निश्चित तौर पर शांत रहते हैं. संतुलन का अभ्यास रस्सी और बॉल पर चलकर किया जाता है. जगलिंग के दौरान लेफ्ट राइट कॉर्डिनेशन जरूरी है. इस कॉर्डिनेशन का दिमाग से सीधा संबंध है."

सर्कस स्कूल में आने वाले बच्चे आम तौर पर पढ़ाई लिखाई में ज्यादा एकाग्र निकलते हैं. निच के मुताबिक मल्टी टास्किंग के लिए एकाग्रता जरूरी है और लगातार अभ्यास से बच्चे ध्यान केंद्रित करना सीख जाते हैं.

पहले दिन स्कूल पहुंची एमिली बस घंटे भर में बाद बिना हिचक और डर के अब रस्सी पर लटक रही है. पहले ही दिन ट्रेनिंग के साथ कुछ दोस्त भी बना लिए. वीडियो गेम, टीवी और स्मार्टफोन से भरती दुनिया में अब उसे भी अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेल और मेल का एक कोना मिल गया है. मां बाप भी जानते हैं कि शारीरिक और मानसिक रूप से चुस्त बच्चे भविष्य में जिंदगी की कठिनाइयों को ज्यादा सहज ढंग से स्वीकार करेंगे.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: आभा मोंढे

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