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पोंछा लगाने से व्हाट्सऐप तक

२१ फ़रवरी २०१४

यान कूम का बचपन इतनी गरीबी में बीता कि उन्हें सोवियत काल के नोटबुक संभाल कर रखने पड़ते थे. और मां के साथ दो वक्त की रोटी के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. व्हाट्सऐप बनाने वाले कूम अब अरबों डॉलर के मालिक हैं.

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Jan Koum Gründer WhatsApp Porträt
तस्वीर: picture-alliance/dpa

उनके साझीदार ब्रायन एक्टन ने कभी डॉट कॉम के बुलबुले में हाथ जलाया था. फेसबुक और ट्विटर पर नौकरी की अर्जी दी थी लेकिन नाकामी हाथ आई थी. कहीं काम नहीं मिला था. इन दोनों दोस्तों ने मिल कर मोबाइल का सोना ऐप यानी व्हाट्सऐप तैयार कर दिया, जिसने न सिर्फ इन्हें अरबपति बना दिया, बल्कि मोबाइल इस्तेमाल करने का तरीका ही बदल दिया.

फेसबुक ने व्हाट्सऐप को पूरे 19 अरब डॉलर देकर खरीदे हैं. और कूम को अपने निदेशक मंडल में खास कुर्सी भी दी है. कूम ने अरबों के इस डील को साइन करने के लिए उस इमारत को चुना, जहां कभी वह अपनी मां के साथ खाने की लाइन में लगे होते थे. फोर्ब्स पत्रिका का कहना है कि माउंटेनव्यू के इसी दफ्तर में व्हाट्सऐप का दफ्तर है.

कूम एक विद्रोही यहूदी के तौर पर बड़े हुए. पिछले ही हफ्ते 38 साल के हुए कूम का बचपन यूक्रेन की राजधानी कीव के पास बीता. जब सोवियत संघ टूट रहा था, तो वह 16 साल के किशोर थे और उनकी मां उन्हें लेकर अमेरिका पहुंच गईं. पिता अमेरिका नहीं जा सके.

Symbolbild Facebook kauft WhatsApp
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

सेक्विला कैपिटल के पार्टनर जिम गोएत्ज बताते हैं, "जब वह अमेरिका आए, तो उन्हें कूपन वाले खाने (फूड स्टैंप) पर रहना पड़ा. वह रूस और यूक्रेन में अपने रिश्तेदारों के संपर्क में रहना चाहते थे." कूम की मां जब अमेरिका आ रही थी, तो उन्होंने अपने साथ काफी सारी कॉपी और कलम रख ली थी ताकि कूम की पढ़ाई के खर्च को कम किया जा सके.

कूम स्कूल में बहुत अच्छे नहीं थे और काम के बाद उन्हें एक स्टोर में झाड़ू पोंछा लगाना पड़ता था. बाद में उनकी मां को कैंसर हो गया. कूम ने लाइब्रेरी से किताबें ले लेकर कंप्यूटर नेटवर्किंग की पढ़ाई की. वह सिलिकॉन वैली की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे और उसी वक्त याहू में काम भी करते थे. याहू में ही एक्टन भी काम करते थे और दोनों की वहीं दोस्ती हुई.

एक मौका था, जब कूम को याहू और कॉलेज में एक को चुनना था. उन्होंने याहू चुना. इस बीच एक्टन ने साल 2000 के आस पास के इंटरनेट बूम के दौरान लाखों डॉलर खर्च किए और सब लुटा दिया. एक्टन और कूम ने 2007 में याहू छोड़ दिया और एक साल की छुट्टी ले ली.

दोनों ने फेसबुक में काम करने की अर्जी दी और दोनों को मना कर दिया गया. एक्टन ने 2009 में इस बारे में ट्वीट किया था. इस बीच आईफोन का जलवा उभर रहा था और कूम ने इससे प्रेरित होकर मैसेजिंग सर्विस शुरू करने का इरादा किया. उन्होंने अमेरिका में रह रहे रूसी लोगों से मदद की गुहार की. एक्टन भी उस वक्त बेरोजगार थे. वह भी साथ हो लिए. दोनों ने मिल कर "व्हाट्स अप" की तर्ज पर व्हाट्सऐप की शुरुआत कर दी.

उनका एक लाइन का मंत्र था, "कोई गेम नहीं, कोई इश्तिहार नहीं, कोई फर्जी काम नहीं." कूम के डेस्क पर अभी भी वह नोट लगा है, जिसमें एक्टन ने कभी यह बात लिखी थी.

यह फॉर्मूला ऐसा हिट हुआ कि चार साल में इसके 45 करोड़ यूजर हो गए और हर रोज 50 अरब संदेश फोनों के आर पार जाते हैं. कूम के ट्विटर पर 12,000 फॉलोअर हैं लेकिन वह खुद सिर्फ एक को फॉलो करते हैं "जीसस क्राइस्ट, सिलिकन वैली", यह अकाउंट इंटरनेट इंडस्ट्री के मजाहिया बातों के लिए है.

एजेए/ओएसजे (एएफपी)