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इस्राएल में यहूदी राष्ट्र को लेकर विवाद

२३ फ़रवरी २०१४

इस्राएल के कुछ नेता चाहते हैं कि देश को कानूनी तौर पर यहूदी राष्ट्र घोषित किया जाए. लेकिन फलीस्तीन के साथ समझौते के रास्ते पर इस्राएल का यह फैसला अड़ंगा खड़ा कर सकता है.

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तस्वीर: picture alliance/Arco Images GmbH

इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने मांग की है कि फलीस्तीनी इस्राएल की यहूदी पहचान को मान्यता दें. नेतन्याहू ने कहा, "यह यहूदी जमीन है, यह यहूदी देश हैं. जब हम एक समझौता करते हैं तो वह यहूदी लोगों के राष्ट्र और फलीस्तीनी लोगों के राष्ट्र के बीच समझौता है." फलीस्तीनी प्रतिनिधियों ने इस्राएल की इस मांग का विरोध किया है और कहा है कि इस्राएल हर तरह की सुलह की कोशिश पर पानी फेर रहा है.

इस्राएल का अस्तित्व

फलीस्तीनी स्वतंत्रता संगठन पीएलओ के वरिष्ठ नेता हनान अशरावी ने कहा, "मुझे वह दिन याद हैं जब हम से कहा जाता था कि आप बस पीएलओ से इस्राएल को मान्यता दिलवाएं और इस्राएल की सुरक्षित सीमाओं के भीतर उसके अस्तित्व को बरकरार रखने के अधिकार को पहचानें." अशरावी का कहना है कि फलीस्तीन ने ऐसा किया लेकिन जहां तक इस्राएल की यहूदी पहचान का सवाल है, यह एक नई बात है, "हम फलीस्तीन में एक विविध, लोकतांत्रिक और संयुक्त राष्ट्र बनाना चाहते हैं, एक ऐसा देश नहीं जो धर्म या नस्ल पर आधारित हो."

फलीस्तीन के लिए इस्राएल की यह मांग पूरी करना बहुत बुद्धिमानी नहीं होगी. इस्राएल के साथ बातचीत में "वापस लौटने का अधिकार" एक बहुत बड़ा मुद्दा है. इसके तहत इस्राएल में अपनी जमीन को छोड़ने वाले फलीस्तीनियों को अपनी संपत्ति वापस मिल सकती है. साथ ही इस्राएल में 20 प्रतिशत लोग अरब मूल के हैं और इस्राएल को अगर यहूदी राष्ट्र बना दिया गया तो इनके अधिकारों का हनन हो सकता है.

इस्राएल में भी कई लोग इस्राएली राष्ट्र के खिलाफ हैं लेकिन कुछ नागरिक मानते हैं कि उन्हें अपने देश का हक तो होना चाहिए और अगर वह अपना अलग देश चाहते हैं तो इसके लिए उनकी आलोचना नहीं होनी चाहिए. इस्राएली बुद्धिजीवी अब्रहाम डिस्किन कहते हैं कि इस्राएल को इस्राएली राष्ट्र के तौर पर मान्यता देना फलीस्तीनियों के लिए परीक्षा है क्योंकि इससे पता चलेगा कि वह शांति स्थापित करने की ओर कितने प्रतिबद्ध हैं.

धर्म और राष्ट्र कैसे मिलें

Symbolbild USA Israel im Gespräch
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने हाल ही में फलिस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास से बात की हैतस्वीर: Getty Images

उधर फलीस्तीन और इस्राएल में शांति बहाल करने की कोशिश कर रहे अमेरिका का कहना है कि वह इस्राएल को यहूदी राष्ट्र के तौर पर मान्यता देता है. पिछले साल दोनों देशों के बीच शांति वार्ता स्थापित करने पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कांग्रेस में कहा कि बातचीत का मकसद है, "फलीस्तीनियों के लिए सम्मान और एक अलग राष्ट्र. और इस्राएली राष्ट्र के लिए शांति और सुरक्षा- एक यहूदी राष्ट्र जिसे पता है कि अमेरिका हमेशा उनका साथ देगा."

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने इस्राएली नागरिकों को सलाह भी दी है कि वे फलीस्तीनी जमीन से हट जाएं ताकि वह यहूदी होते हुए अल्पसंख्यक न बनें. अगर इस्राएल फलीस्तीन को कुछ अहम इलाके सौंपने की कोशिश करता है तो वह सिर्फ इसलिए होगा ताकि वहां रह रहे फलिस्तीनी इस्राएल में न आएं. अगर इस्राएल पश्चिम तट, पूर्वी येरुशलम और गजा को अपने पास रखता है तो इस इलाके में कुछ एक करोड़ 20 लाख लोग होंगे और इनमें से आधी जनसंख्या फलीस्तीनी होगी.

लेकिन क्या इस्राएल वाकई यहूदी राष्ट्र बन सकता है. इसके लिए इस्राएलियों को खुद कुछ मुश्किल सवालों का जवाब देना होगा. मसलन क्या सारे यहूदी एक राष्ट्र का हिस्सा हैं या फिर वह दुनिया भर के वो लोग हैं जो अलग अलग देशों से आते हैं लेकिन एक धर्म को मानते हैं. क्या किसी धर्म का राष्ट्र होता है या क्या राष्ट्र अपना धर्म चुनता है. और क्या धर्म और राष्ट्र वैश्वीकरण के दौर में मेल खाते हैं. फलीस्तीनी नेता मुस्तफा बारगूती कहते हैं, "यहूदी धर्म इस्लाम और ईसाई धर्म की तरह है. इस्राएल एक राष्ट्र है और इस्राएली नागरिकता इस्राएल में सारे गुटों और नस्लों का प्रतिनिधित्व करती है, इसमें फलीस्तीनी भी शामिल हैं."

एमजी/ओएसजे (एपी)

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