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कैसे सोचती हैं औरतें

२२ फ़रवरी २०१४

फिल्मकार इम्तियाज अली का कहना है कि महिलाओं ने उन्हें खासा प्रभावित किया है. वे हमेशा से जानना चाहते थे कि महिलाओं के दिमाग में ज्यादा बातें चल रही होती हैं.

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तस्वीर: DW/Samrah Fatima

जब वी मेट, लव आज कल और रॉकस्टार की कामयाबी के बाद निर्देशक इम्तियाज अली की फिल्म हाईवे इस हफ्ते सिनेमा घरों में पहुंची. बर्लिन फिल्म महोत्सव के लिए आए इम्तियाज अली ने डॉयचे वेले के साथ बातचीत में बताई फिल्म से जुड़ी कई खास बातें.

आपकी फिल्म हाईवे काफी हद तक रोड मूवी है. क्या वजह है कि आपकी सभी फिल्मों की कहानी में रास्तों और यात्राओं का बहुत बड़ा हिस्सा रहा है?

मुझे खुद यात्रा करना पसंद है. मैं भारत में बहुत घूमा हूं. इस फिल्म का आइडिया भी मुझे यात्रा के दौरान आया. असल में इस फिल्म के पीछे एक और बात है. मैं हमेशा बड़े शहरों के बच्चों को देखता हूं जिन्हें अपने शहर से बाहर किसी दूसरी जगह के बारे में कुछ नहीं पता होता है. लेकिन अगर वे उस माहौल से बाहर लाए जाते हैं तो उनके जीवन में कितने बड़े परिवर्तन आ जाते हैं. कई बार ये बहुत ज्यादा सकारात्मक परिवर्तन होते हैं.

रणदीप हुड्डा का व्यक्तित्व काफी सख्त दिखता है और आलिया बहुत छोटी हैं अभी. ऐसे में इन दोनों को एक साथ कास्ट करने के बारे में कैसे सोचा?

मैं जोड़े तय नहीं करता हूं. मैं लोगों को उनके किरदार के लिए फिल्म में कास्ट करता हूं. आपको फिल्म देखने पर खुद समझ आ जाएगा कि दोनों किरदारों का एक दूसरे से अलग होना कितना जरूरी है. उससे भी ज्यादा अलग होना जितना कि रणदीप और आलिया एक दूसरे से असल जीवन में अलग दिखते हैं. मुझे जोड़े में कास्टिंग करना समझ नहीं आता है. मुझे सिर्फ यह समझ आता है कि किरदार क्या है और उसे कौन निभाने वाला है. और वैसे भी यह फिल्म कोई रोमांटिक प्रेम कहानी नहीं है.

Film stills of Nayak ***KEIN SOCIAL MEDIA***
तस्वीर: Aman Dhillon

पिछली तीन फिल्मों में आपने बड़े स्टार लिए. क्या सफलता मिलने से आपको इस बात का आत्मविश्वास मिला है कि कम मशहूर कलाकारों के साथ भी आपकी फिल्म चल सकती है?

असल में बात यहां उल्टी है. कई बार आप कामयाबी के जाल में भी फंस सकते हैं. क्योंकि पिछली फिल्में सफल रहीं. ऐसे में मुझ पर इस बात का दबाव भी हो सकता था कि अब मुझे बड़े स्टार के साथ ही फिल्म बनानी होगी. लेकिन मैं इस फिल्म को वैसे ही बनाना चाहता था जैसी कि स्क्रिप्ट की मांग थी.

यह फिल्म बड़े कलाकारों के साथ इसलिए भी नहीं बन सकती थी क्योंकि इसे हमने बहुत कठिन परिस्थितियों में शूट किया है. हमें कलाकारों से बहुत ज्यादा समय चाहिए था. स्टार होने के कई पैमाने हो सकते हैं. फिल्म की सफलता इसी बात से तय होती है कि उसके किरदार निभाने वाले कलाकार सही हैं या नहीं.

आपकी फिल्मों की हीरोइनें आमतौर पर बागी होती हैं. इसकी कोई खास वजह?

बचपन से ही मैं महिलाओँ के प्रति बहुत आकर्षित रहता था. कई बार मुझे इस बारे में बुरा भी लगता था. लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि इसमें कोई बुरी बात नहीं है. मेरी कोई बहन नहीं है, मैं जानना चाहता था कि आखिर लड़कियां कैसे सोचती होंगी. मैं जिस तरह की महिलाओं से घिरा रहता था खासकर मेरी मां और मौसियां वे बेहद सूझबूझ वाली और अक्लमंद औरतें थीं. मेरी मां बहुत समझदार महिला हैं. इस वजह से मेरी महिलाओं के प्रति सोच यही रही है कि ये ज्यादा जानती हैं. महिलाओं के दिमाग में हमसे कहीं ज्यादा बातें चल रही होती हैं. तो मेरे शुरुआती जीवन में महिलाओं ने मुझे खासा प्रभावित किया है, इसी की छाप मेरी फिल्मों में भी दिखाई देती है.

चर्चा है कि फिल्म में सामाजिक संदेश देने की कोशिश की गई है. क्या आपको लगता है फिल्मों में संदेशों से समाज पर असर पड़ता है?

फिल्म में संदेश समाज को बदलने के मकसद से नहीं दिया जाता है. लेकिन हम इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते कि कला की गहरी परछाईं समाज पर पड़ती है. सिर्फ यही फिल्म नहीं, मैं मानता हूं कि कोई भी जब फिल्म बनाता है तो उसके आसपास जो हो रहा है उसे वह कैसे देखता है फिल्म में यह दिखाई देता है. अगर फिल्म में कोई संदेश है तो वह भी कहानी के जरिए ही कह देना जरूरी है, उसे बाद के लिए छोड़ना नहीं चाहिए.

गैंग्स ऑफ वासेपुर के निर्देशक अनुराग कश्यप ने हाल में कहा इम्तियाज जैसी प्रेम कहानियां बनाना मेरे बस की बात नहीं. क्या वजह है कई मौकों पर अक्सर वह आपकी तारीफ करते दिखते हैं, जो कि हिन्दी सिनेमा में दो निर्देशकों के बीच आम नहीं है?

यह अनुराग का बड़प्पन है कि वह ऐसा कहते हैं. असल में मैं और अनुराग दोस्त हैं, हमें ज्यादा मिलने का तो समय नहीं मिलता लेकिन हम ऐसे ही संदेशों के जरिए एक दूसरे की टांग खींचते रहते हैं. सच्चाई यह है कि मेरी फिल्म बर्लिन फिल्म महोत्सव आई इस बात की मुझसे ज्यादा उसे खुशी है. कई बार मेरे जीवन में बेहद खुशी के पल आए और मैंने उतना खुश महसूस नहीं किया जितना अनुराग ने.

इंटरव्यू: समरा फातिमा

संपादन: महेश झा

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