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बढ़ रहे हैं एकल आय वाले परिवार

२४ फ़रवरी २०१४

लगातार बढ़ती महंगाई के इस दौर में भारत में ज्यादातर घरों में पति और पत्नी, दोनों की नौकरी से घर चलाने में सहूलियत होती है. लेकिन अब यह बदल रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/Annie Owen/Robert Harding World Imagery

देश में ऐसे परिवारों की तादाद बढ़ रही है जिनमें से सिर्फ एक ही नौकरी करता है. संयुक्त परिवारों का टूटना इसकी एक प्रमुख वजह है. पति या पत्नी में से कोई एक घर और बच्चों की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ रहा है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) की ओर से किए गए दो सर्वेक्षणों के तुलनात्मक अध्ययन से इसका खुलासा हुआ है.

ग्रामीण इलाके भी अछूते नहीं

भारत के ग्रामीण इलाकों में खेती पर निर्भरता और गरीबी की वजह से ऐसे परिवारों की तादाद ज्यादा रही है जिनमें एक से ज्यादा लोग काम करते हैं. शहरी इलाकों में ज्यादातर घरों में परिवार का एक सदस्य ही कमाऊ है और उनका अनुपात लगातार बढ़ रहा है. ग्रामीण इलाकों में वर्ष 1993-94 में जहां 66 प्रतिशत परिवारों में एक से ज्यादा लोग कमाते थे, वहीं वर्ष 2011-12 में ऐसे परिवारों की तादाद घट कर 54 प्रतिशत हो गई. इसी दौरान एकल आय वाले परिवारों की तादाद 31 प्रतिशत से बढ़ कर 41 प्रतिशत पहुंच गई. इसी तरह ऐसे परिवारों की तादाद तीन से बढ़कर पांच प्रतिशत हो गई जहां कोई भी सदस्य नौकरी नहीं करता है.

शहरी इलाकों में इसी अवधि के दौरान एकल आय वाले परिवारों की तादद 53 से बढ़ कर 55 प्रतिशत हो गई जबकि एक से ज्यादा कमाऊ सदस्यों वाले परिवारों की तादाद 39 प्रतिशत से घट कर 36 प्रतिशत हो गई.

विशेषज्ञों की राय

Bishnoi Indiens erste Umweltaktivisten
गांवों मेंतस्वीर: F.Gaedtke

समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस अजीबोगरीब बदलाव के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. इनमें इस बात की भी खासी अहमियत है कि परिवार की महिला सदस्य नौकरी करती है या नहीं. लेकिन यही एकमात्र वजह नहीं है. उनका कहना है कि इच्छा से या आर्थिक मजबूरी के चलते संयुक्त परिवारों के टूटने और एकल परिवारों की बढ़ती तादाद भी ऐसे बदलाव लाती है.

महिलाओं के रोजगार पर शोध करने वाली समाजशास्त्री सुनंदा घोष कहती हैं, "इसकी प्रमुख वजह यह है कि महिलाओँ के लिए रोजगार के मौके लगातार कम हो रहे हैं. इसमें बच्चों के लिए डे केयर सेंटर की कमी और महिलाओं के लिए परिवहन सुविधाओं का अभाव जैसी वजहें भी शामिल हैं."

एक शोध संगठन सेंटर फार वुमेंस डेवलपमेंट स्टडीज की नीता एन कहती हैं, "समाज के सबसे गरीब तबके में ऐसे परिवारों की तादाद ज्यादा है जहां घर का एक से ज्यादा सदस्य काम करता है. उनमें शिक्षा का अभाव है. ऐसे लोगों में दलितों और आदिवासियों की तादाद ज्यादा है." वह कहती हैं कि ऐसे तबके में भी रोजगार के मौके कम हो रहे हैं और महिलाओं की नौकरी खत्म हो रही है. नतीजतन वह एक ही सदस्य की कमाई पर घर चलाने के लिए मजबूर हैं.

बेहतर शिक्षा, मौके कम

बेहतर शिक्षा और परिवार को बेहतर तरीके से चलाने के लिए घर के एक से ज्यादा सदस्य का कमाऊ होना जरूरी है. लेकिन काम के मामले में महिलाओं की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. 2004-05 में 15 साल या उससे ऊपर की 57 प्रतिशत महिलाएं घरों में बिना काम के बैठी रहती थीं. लेकिन वर्ष 2009-10 तक ऐसी महिलाओँ की तादाद बढ़ कर 65 प्रतिशत तक पहुंच गई.

क्या इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि आम लोगों में समृद्धि बढ़ी है और इसलिए घर के एक सदस्य का कमाऊ होना ही काफी है? विशेषज्ञों का दावा है कि ऐसा नहीं है. इसकी वजह यह है कि ग्रामीण इलाकों में पिछले 18 वर्षों में प्रति परिवार औसतन मासिक आय में महज 37 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. शहरी इलाकों में यह वृद्धि 54 प्रतिशथ है. महंगाई को ध्यान में रखते हुए यह बढ़त काफी नहीं है. इसके अलावा रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में होने वाला पलायन भी इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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