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हवा हुई खराब

१४ मई २०१४

दिल्ली, बीजिंग या फिर पेरिस, विकास की राह पर आगे बढ़ रहे करीब करीब सभी देशों के बड़े शहर स्मॉग नाम के एक खतरे का सामना कर रहे हैं. क्या है स्मॉग और हमारे शरीर पर इसका क्या असर होता है..

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Smog in Peking China 24.02.2014
तस्वीर: Reuters

बीजिंग में आज ऑरेंज एलर्ट हटाया गया. वायु प्रदूषण की खतरनाक सीमा को देखते हुए वहां बीते तीन दिनों से एलर्ट लगा हुआ था. चीन की राजधानी में हवा इतनी खराब हो गई है कि वैज्ञानिकों ने कह दिया है कि शहर रहने लायक ही नहीं रहा. दूसरी ओर पेरिस में भी वायु प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि सरकार को कड़े कदम उठाने पड़े हैं. यहां सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को तीन दिन के लिए मुफ्त कर दिया गया ताकि लोग अपनी कारें घर पर ही छोड़ दें और इनके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित हों.

ठंडी और गर्म हवा का चक्कर

'स्मॉग' शब्द का इस्तेमाल 20वीं सदी के शुरूआत से हो रहा है. यह शब्द अंग्रेजी के दो शब्दों 'स्मोक' और 'फॉग' से मिलकर बना है. आम तौर पर जब ठंडी हवा किसी भीड़भाड़ वाली जगह पर पहुंचती है तब स्मॉग बनता है. चूंकि ठंडी हवा भारी होती है इसलिए वह रिहायशी इलाके की गर्म हवा के नीचे एक परत बना लेती है. तब ऐसा लगता है जैसे ठंडी हवा ने पूरे शहर को एक कंबल की तरह लपेट लिया है.

गर्म हवा हमेशा ऊपर की ओर उठने की कोशिश करती है और थोड़ी ही देर में वह किसी मर्तबान के ढक्क्न की तरह व्यवहार करने लगती है. कुछ ही समय में हवा की इन दोनों गर्म और ठंडी परतों के बीच हरकतें रुक जाती हैं. इसी खास 'उलट पुलट' के कारण स्मॉग बनता है. और यही कारण है कि गर्मियों के मुकाबले जाड़ों के मौसम में स्मॉग ज्यादा आसानी से बनता है.

स्मॉग बनने का दूसरा बड़ा कारण है प्रदूषण. आजकल हर बड़ा शहर वायु प्रदूषण से जूझ ही रहा है. कहीं उद्योग, धंधों और गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ तो कहीं चिमनियां, सब मिलकर हवा में बहुत सारा धुंआ छोड़ रहे हैं.

सीमा तय करना जरूरी

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) काफी समय से चेतावनी देता आया है कि सूक्ष्म पर्टिकुलेट कण, ओजोन, नाइट्रोजन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड लोगों की सेहत के लिए बहुत खतरनाक हैं. पिछले सालों में डब्ल्यूएचओ ने बार बार कहा है कि इन हानिकारक पदार्थों के लिए एक सीमा तय करनी चाहिए नहीं तो बड़ें शहरों में रहने वाले लोगों को बहुत नुकसान पहुंचेगा.

जाड़ों में जब स्मॉग का मौसम चल रहा होता है तब गाड़ियों के धुंए से हवा में मिलने वाले ये सूक्ष्म कण बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर देते हैं. इन सूक्ष्म कणों की मोटाई करीब 2.5 माइक्रोमीटर होती है और अपने इतने छोटे आकार के कारण यह सांस के साथ फेफड़ों में घुस जाते हैं और बाद में हृदय को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

गर्मियों में जब स्मॉग बनता है तो सबसे बड़ी समस्या होती है ओजोन की. कारों के धुएं में जो नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन्स होते हैं, वे सूर्य की रोशनी में रंगहीन ओजोन गैस में बदल जाते हैं. ओजोन ऊपरी वातावरण में एक रक्षा पर्त बना कर हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है. लेकिन वही ओजान अगर धरती की सतह पर बनने लगे तो हमारे लिए बहुत जहरीला हो जाता है.

सड़क दुर्घटनाओं से भी खतरनाक

जर्मनी में माइंस के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के बेनेडिक्ट श्टाइल कहते हैं, "ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि स्मॉग असल में कितना खतरनाक हो सकता है." हर साल केवल जर्मनी में ही 40,000 से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से अपनी जान गंवा देते हैं. यह संख्या सड़कों पर दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों से भी ज्यादा है. लंबे समय तक इन हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने पर सांस की खतरनाक बीमारियां, फेफड़ों या मूत्राशय का कैंसर भी हो सकता है.

इसके अलावा ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया में कई हानिकारक कण निकलते हैं. हवा के साफ रखने के लिए बर्लिन और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में प्रशासन ने कम उत्सर्जन वाले क्षेत्र बना दिए हैं. पिछले एक दशक में सार्वजनिक यातायात के साधनों का काफी विकास किया गया है. श्टाइल कहते हैं, "विकासशील देशों में ज्यादा लोगों को छोटी दूरी तय करने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे समस्या का समाधन तो नहीं हो जाएगा लेकिन यह एक शुरुआत जरूर होगी."

रिपोर्ट: यूलिया फेर्गिन/आरआर

संपादन: ईशा भाटिया