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यौनकर्मियों की नई जिंदगी

२५ मार्च २०१४

वेश्यावृत्ति को दुनिया का सबसे पुराना पेशा कहते हैं. ऐसा पेशा जो कभी खत्म नहीं हो सकता. लेकिन इंडोनेशिया में इसे बदलने की कोशिश की जा रही है.

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तस्वीर: Fotolia/Perseomedusa

इंडोनेशिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है सुराबाया. यहां की मेयर त्रि रिसमहारिनी ने पिछले कुछ समय में शहर का हुलिया बदल दिया है. आसपास नए पार्क बन गए हैं, गरीबों को ना सिर्फ नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं, बल्कि पढ़ाई लिखाई के अवसर भी मिल रहे हैं. शहर के विकास में अब तक तो उन्हें सफलता मिली है, पर अब उनका अगला लक्ष्य है 'डॉली' को बंद करना.

कौन है डॉली?

डॉली सुराबाया के रेड लाइट एरिया का नाम है. 70 के दशक से यह शहर के बीचो बीच बसा हुआ है. यहां करीब 60 चकले हैं और हर एक में कम से कम 100 महिलाएं काम करती हैं. एक स्थानीय एनजीओ के अनुसार पास के ही एक इलाके 'जराक' में भी कई छोटे छोटे वेश्यालय हैं जिनमें लगभग हजार महिलाएं काम करती हैं. इन दोनों इलाकों को दक्षिण पूर्वी एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया माना जाता है.

त्रि रिसमहारिनी से पहले भी कई मेयर इस इलाके को बंद करने की बात कर चुके हैं. लेकिन इस काम में अब तक कोई भी सफल नहीं रहा है. 52 साल की रिसमहारिनी ने 2010 में कार्यभार संभाला और तब से उनकी छवि शहर को साफ करने वाली नेता के रूप में उभरी है. वे ना केवल सड़कों और इमारतों को साफ रखने की बात करती हैं, बल्कि साफ सुथरी राजनीति का भी प्रचार करती हैं.

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तस्वीर: Manuel Pedreza/AFP/Getty Images

पर सवाल यह है कि क्या वे दुनिया के सबसे पुराने पेशे को बंद करा पाएंगी? रिसमहारिनी का कहना है कि उनका इरादा पक्का है. तीन चकलों को वे बंद करा चुकी हैं और बाकी को उन्होंने 19 जून की डेडलाइन दी है. अपनी रणनीति के बारे में उनका कहना है, "मुझे पता था कि डॉली के साथ निपटना सबसे मुश्किल होगा, इसीलिए मैंने यह काम अंत के लिए रखा था."

अपनी मर्जी का जीवन

जहां एक तरफ मेयर साहिबा शहर को साफ करने की मुहिम चला रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर इन रेड लाइट एरिया में काम करने वाली महिलाओं को अपने भविष्य की चिंता सता रही है. सरकार ने 2010 से 2013 के बीच 650 यौनकर्मियों को खाना पकाने और हेयर ड्रेसर के काम का प्रशिक्षण दिया है. इसके अलावा कुछ को नकद राशि भी दी गयी है ताकि वे नया जीवन शुरू कर सकें. रिसमहारिनी का कहना है कि इस साल 900 और महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी जिससे "वे अपनी मर्जी का जीवन" जी पाएंगी.

लेकिन 'डॉली' में रहने वाली महिलाओं से पूछा जाए, तो वे कुछ और ही बताती हैं. 27 साल की मेमे तीन साल से यहां काम करती हैं. पति की दुर्घटना में मौत के बाद उन्हें यहां आना पड़ा. हर रात उनके पास औसतन दस ग्राहक आते हैं. इस तरह से एक रात में वे 3,000 रुपये तक कमा लेती हैं. सरकार ने उन्हें 15,000 रुपये ले कर धंधा छोड़ देने को कहा. जाहिर है उन्होंने मना कर दिया. इस पैसे से वे छोटी बहन की पढ़ाई का खर्च उठा रही हैं. मेमे कहती हैं कि ठीक ठाक पैसा जमा हो जाए तो वे डॉली छोड़ कर चली जाएंगी और परचून की दूकान खोल लेंगी. मेमे की ही तरह कुछ दूसरी महिलाएं भी मेयर के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रहीं.

अर्थव्यवस्था को धक्का

मेयर को ना सिर्फ इन महिलाओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि होटल चलाने वालों और अस्पतालों का भी. इस इलाके की पूरी अर्थव्यवस्था ही डॉली पर टिकी है. डॉली के बंद होने का मतलब होगा सभी होटलों पर ताला लग जाना. यहां तक कि खाने पीने की दुकानें भी बंद हो जाएंगी. साथ ही यहां के अस्पताल भी यौनकर्मियों पर निर्भर करते हैं क्योंकि महिलाएं अपना टेस्ट कराने यहां आती रहती हैं.

इसके अलावा आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को भी शिकायत है. उन्हें डर है कि वेश्यावृत्ति कर चुकी महिलाएं उनके मोहल्ले में आ कर रहने लगेंगी. रिसमहारिनी को अब इन सभी चुनौतियों का सामना करना है. उनका कहना है कि इन महिलाओं को नई राह दिखाना जरूरी है, "ये नन्हे बच्चों की तरह हैं, जो अब छोटे छोटे कदम ले कर चलना सीख रहे हैं."

आईबी/एमजे (रॉयटर्स)