"लापरवाह थी यूपी सरकार"
२६ मार्च २०१४न्यायाधीश पी सदाशिवम की बेंच ने कहा कि सांप्रदायिक झड़पें और उसके बाद हिंसा सत्ताधारी पार्टी रोक सकती थी, बशर्ते खुफिया एजेंसियों ने समय पर समस्या की आहट ली होती, "अगर केंद्र और राज्य की खुफिया एजेंसियों ने मुश्किल पहले ही समझ ली होती और जिला प्रशासन को चेतावनी दी होती तो ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना रोकी जा सकती थी. शुरुआती सबूतों के आधार पर हम राज्य सरकार को शुरू में बेपरवाह रहने का जिम्मेदार मानते हैं और इसका भी कि उन्होंने इन दंगों को रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए."
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उन परिजनों को 15 लाख रुपये का मुआवजा दे जिनके रिश्तेदार मारे गए. बलात्कार पीड़ितों को पांच लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया गया है.
सही जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश सूची जारी की और कहा कि जाति, धर्म और पार्टी की ओर ध्यान नहीं देते हुए वह सभी आरोपियों को कटघरे में खड़ा करे. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि इस समय सरकार के कदमों के मद्देनजर सीबीआई या एसआईटी जांच के निर्देश देने की जरूरत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बलात्कार पीड़ितों को सुरक्षा तब तक दी जाएगी जब तक वो चाहेंगे या फिर केस का फैसला होने तक इसे जारी रखा जाएगा. बेंच ने कहा, "आरोपी चाहे किसी भी पार्टी के हों उन्हें पकड़ने की गंभीर कोशिश की जाएगी और उन्हें सही अदालत के सामने खड़ा किया जाएगा."
सात सितंबर 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के इलाके में भड़के सांप्रदायिक दंगों ने 40 की जानें लीं, 85 लोग इसमें घायल हुए और 51,000 बेघर. पीड़ितों में ज्यादातर मुसलमान हैं.
एएम/ओएसजे (पीटीआई)