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वायरस का इलाज साइक्लोस्पोरिन

२४ जून २०१४

कई तरह के बैक्टीरिया पर असर करने वाली, यानि ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायॉटिक्स तो काफी दिनों से बाजार में मिल रही हैं. लेकिन वायरस के खिलाफ ऐसी दवाएं बनाना मुश्किल है.

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तस्वीर: DW

वायरस के खिलाफ काम करने वाली दवाएं एक ही वायरस को मारने के लिए बनी होती हैं. जहां तक सार्स जैसी बीमारियों का सवाल हैं, इनके लिए अब तक कोई इलाज नहीं मिला है.

21वीं सदी की शुरुआत के में वैज्ञानिकों को डर पैदा हुआ कि सार्स यानी सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम के कारण फेंफड़ों को नुकसान होने से हजारों लोगों की जानें जाएंगी. सार्स को फैलाने वाले वायरस का नाम है कोरोना वायरस. 2003 में 800 लोग इसका शिकार बने. इसका इलाज अभी तक नहीं मिल सका है. बॉन और म्यूनिख से वायरस विशेषज्ञों ने एक ऐसी दवा बनाई है जो सार्स वायरस की वृद्धि को रोक सकती है.

इस दवा का नाम है साइक्लोस्पोरिन और इसमें खास बात यह है कि यह अलग अलग तरह की कोरोना वायरस पर असर करती है. बॉन विश्वविद्यालय में वायरॉलजिस्ट डॉक्टर मार्सेल ए मुलर कहते हैं, "कोरोना वायरस के एक पूरे स्पेक्ट्रम यानी अलग नस्लों को साइक्लोस्पोरिन से रोका जा सकता है. मनुष्यों के लिए जो घातक कोरोना वायरस हैं, उनमें सार्स और मिडल ईस्टर्न रेस्पिरेटरी सिंड्रोम मेर्स के वायरस शामिल हैं. ठंडे मौसम में सर्दी होने के पीछे भी वायरस का हाथ है. बिल्लियों में फ्लू या सूअर के लिए घातक कोरोना वायरस को भी रोकने में साइक्लोस्पोरिन मदद कर सकता है.

कैसे काम करती है दवा

साइक्लोस्पोरिन वायरस पर कैसे असर करता है? वायरस पर शोध कर रहे मुलर माइक्रोस्कोप से ली गई तस्वीरें दिखाते हैं, "यहां आप वह कोशिकाएं देख सकते हैं जो वायरस से संक्रमित हैं. वायरस को हमने हरे रंग से मार्क किया है. साइक्लोस्पोरिन मिलाने से कोशिकाओं में हरा रंग कम हो गया है, यानी इनमें वायरस से संक्रमित नहीं है." दवा कुछ इस तरह काम करती है- वायरस मनुष्य या जानवर के शरीर में आक्रमण कर उसमें खास प्रोटीन की मदद से अपनी संख्या बढ़ाती हैं. इनमें से एक प्रोटीन का नाम है साइक्लोफिलिन, जो वायरस की संख्या बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाता है.

म्यूनिख विश्वविद्यालय में वायरस पर शोध खर रहे आल्ब्रेष्ट फॉन ब्रुन कहते हैं," साइक्लोफिलिन का एक बड़ा काम है बाकी प्रोटीनों को सही तरह मुड़ने या फोल्ड करने में मदद करना. और मजेदार बात यह है कि जब वायरस वाले प्रोटीन सही तरह से फोल्ड नहीं होंगे तो उनमें वायरस ठीक तरह से बढ़ नहीं पाएंगे."

प्रोटीन फोल्डिंग उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसे प्रोटीनों को अपना 3डी आकार मिलता है और वह हमारे शरीर में अपना काम कर पाते हैं. साइक्लोफिलिन को रोकने का काम एंटीवायरस दवा साइक्लोस्पोरिन करती है और वायरस अपने आप कम हो जाते हैं.

दवा के साइड इफेक्ट्स

लेकिन साइक्लोस्पोरिन के नुकसान भी हैं. डॉ. मार्सेल मुलर कहते हैं, "साइक्लोस्पोरिन का एक बड़ा साइड इफेक्ट है कि शरीर की प्रतिरोधी क्षमता दब जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है. और अगर कोई दूसरा वायरल इन्फेकशन हुआ तो इसका बुरा असर हो सकता है."

वैज्ञानिकों की अगली योजना है कि साइक्लोस्पोरिन के मॉलिक्यूल को ऐसे बदला जाए जिससे शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बनी रहे और कोरोना वायरस भी खत्म हो. अब तक के कुछ प्रयोग सफल हुए हैं. म्यूनिख के वायरॉलजिस्ट आल्ब्रेष्ट फॉन ब्रुन कहते हैं, "साइक्लोस्पोरिन से बनी दवाओं का हम मनुष्यों पर इस्तेमाल कर रहे हैं, जाहिर है टेस्ट के तौर पर. जैसे हिपेटाइटिस सी की मिसाल ली जाए तो हमें पता चला कि इस दवा की मदद से हिपेटाइटिस सी वायरस की संख्या बढ़ने से हम काफी हद तक रोक पाए."

रिपोर्टः मार्टिन रीबे/एमजी

संपादनः आभा मोंढे