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रोबोटिक प्रोस्थेसिस का कमाल

२५ अगस्त २०१४

दुर्घटना या बीमारी के कारण या फिर पैदाइश से ही कई लोग चल फिर नहीं सकते. उनके लिए एक नई उम्मीद जगी है. वॉक अगेन नाम के प्रोजेक्ट से रोबोट लोगों की मदद कर रहे है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

वैज्ञानिकों ने एक रोबोट की मदद लेकर कमाल दिखाया है. इस सपने का नाम है वॉक अगेन. वर्ल्ड कप में जर्मनी का जीतना समारोह के आखिरी कदम का हाइलाइट था लेकिन पहले कदम का एक छोटा सा हाइलाइट था 29 साल के पैरेलिटिक युवा का तकनीक की मदद से फुटबाल को किक मारना. यह व्यक्ति चल फिर नहीं सकता.

अपाहिज व्यक्ति को चलने के लिए एक रोबोटिक ढांचा पहनना पड़ता है. इस व्यक्ति तो सिर्फ सोचना है कि उसे चलना है और दिमाग पर लगे सेंसर शरीर के उन हिस्सों को हिलाने की शुरुआत कर देते हैं. प्रोजेक्ट के अगुआ हैं ब्राजीलियाई वैज्ञानिक मिगेल निकोलेलिस.

इस रोबोट प्रोस्थेसिस से इंसान फिर चल सकता है. इसका नियंत्रण इलेक्ट्रिक सिगनल से किया जाता है और इसका नाम है बीआरए सांतोस डमंड वन. डेढ़ साल रिसर्चरों ने इसे बनाने पर काम किया, लेकिन शोध उससे भी पहले शुरू हो चुका था. दुनिया भर के रिसर्चर इसमें साथ आए. मिगेल निकोलेलिस बताते हैं, "यह प्रोजेक्ट एक कॉम्बिनेशन है. 30 साल से हम मूल शोध में लगे हुए हैं और जानवरों पर प्रयोग कर रहे हैं, उन्हीं के कारण आज हम यहां तक पहुंच सके हैं. पिछले चार साल में हमने अपने शोध के नतीजों को चिकित्सा के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया. फिर सारी दुनिया के रिसर्चरों को हम साथ लाए, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, ब्राजील, कुल पच्चीस देशों से."

Italien Medizin Dennis Aabo Sørensen mit Handprotese
तस्वीर: picture-alliance/AP

तकनीक

इलेक्ट्रोड कैप से दिमाग में सिग्नल जाते हैं. इलेक्ट्रोड इलेक्ट्रिक सिग्नल लेते हैं और फिर एक खास इलेक्ट्रो एनसेफैलोग्राफी तकनीक से चित्र बनाते हैं. कई साल पहले ड्यूक यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने एक प्रयोग शुरू किया जिसके तहत बंदरों के दिमाग को कृत्रिम उपकरणों से जोड़ा गया. बंदर अपने दिमाग का इस्तेमाल कर उन उपकरणों का इस्तेमाल कर पाए. इन्हें ब्रेन मशीन इंटरफेस (बीएमआई) कहा गया. बीएमआई कॉर्टेक्स में चल रही दिमागी कोशिकाओं की इलेक्ट्रिक्ल एक्टिविटी को पकड़ते हैं जिससे रोबोट की मूवमेंट्स को अपने हिसाब से चलाया जा सकता है.

हाथों का इस्तेमाल किए बगैर बंदरों ने तरह तरह के वीडियो गेम्स खेलना शुरू किया. इसके बाद रिसर्च को आगे बढ़ाया गया. 1990 के दशक में निकोलेलिस पहले थे जिन्होंने एक ऐसी बांह बनाई जिसे दिमाग से नियंत्रित किया जा सकता था. वह इस रोबोटिक सूट के बारे में बताते हैं, "सिर पर लगी कैप उसके दिमाग की प्रतिक्रियाएं चित्रित करती है. जैसे ही वह हाथ पैर हिलाने का फैसला लेता है, दिमाग की गतिविधि एक एंप्लिफायर में रजिस्टर होती है. सिग्नल पहचाना जाता है, कंप्यूटर सिग्नल को समझता है और पता लगाता है कि मरीज क्या चाहता है. जैसे चलना या किक करना. फिर हाइड्रॉलिक सिस्टम फैसले को अमल में लाता है और कमर, घुटना या पैर हिलाता है. अलग अलग जोड़ साथ में हिलाए जाते हैं ताकि मरीज जैसा चाहता है वैसा हिल सके."

लेकिन अच्छे से चलने के लिए मरीज को जमीन पर पांव रखना जरूरी है. यह भी रिसर्चरों ने खोजा. उन्होंने नकली त्वचा विकसित की. यह अलग अलग लचीले हिस्सों से बनी है जिस पर सेंसर लगे हुए हैं. इनसे दबाव, तापमान और गति का पता चलता है. कुछ को रोबोट के पैर पर फिक्स किया जाता है. निकोलेलिस बताते हैं, "जैसे ही मूवमेंट तय हो जाती है, सेंसर, पैर, घुटनों या कमर तक संदेश पहुंचाते हैं, वह भी मरीज की पहनी हुई शर्ट के जरिए. शर्ट पर वाइब्रेट करने वाले एलिमेंट हैं. इस फीडबैक सिस्टम से मरीज महसूस कर सकता है कि कब ढांचे ने जमीन छुई और कब घुटना हवा में हिला. दिमाग से ये सिस्टम नियंत्रित होता है और सिस्टम मरीज को महसूस करने वाले सिग्नल पहुंचाता है. इससे इंसान और मशीन का हाइब्रिड तैयार होता है."

रिपोर्टः कामिला रुटकोस्की/एएम

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन