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'भारत में एक से तीन करोड़ बाल मजदूर'

गाब्रिएल डोमिंगेज/ एएम१८ अक्टूबर २०१४

मानव तस्करी और आधुनिक गुलामी से जुड़े विषयों के विशेषज्ञ सिद्धार्थ कारा ने दक्षिण एशिया में बाल मजदूरी के कारणों पर डॉयचे वेले के बातचीत की. कारा कहते हैं कि इस समस्या को खत्म करने के लिए सरकारों को कड़े कदम उठाने होंगे.

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Indien Kinderarbeit
तस्वीर: imago/Eastnews

डीडबल्यू: दक्षिण एशिया में बाल मजदूरी की समस्या कितनी गंभीर है?

सिद्धार्थ कारा: भारत में मजदूरी करने वाले बच्चों की संख्या लाखों में होना और इनमें से अधिकतर का निर्माण, खनन, लेदर प्रोसेसिंग, कालीन बुनाई, नाली साफ करने, कूड़ा उठाने और यौनकर्म जैसे खतरनाक कामों में फंसा होना तर्कसंगत लोगों के लिए यह साबित करता है कि स्थिति गंभीर है. सभी बच्चे हालांकि जानलेवा रोजगार में नहीं लगे हैं लेकिन अधिकतर पढ़ाई, स्वास्थ्य और बेहतर जीवन के बजाए लंबे समय काम में गुजारने को मजबूर हैं. मैं ऐसे बच्चों से मिला हूं जिन्हें उनके मालिक रोज पीटते हैं. जब मैं मजबूरी या दबाव की बात करता हूं, तो मेरा मतलब होता बेहद गरीबी और किसी अच्छे विकल्प के अभाव से पैदा हुआ दबाव. भारत में बाल मजदूरी के जितने भी मामले मैंने दर्ज किए हैं, उनमें बच्चों को परिवार के लिए कमाई करने वाले इकलौते सदस्य के तौर पर काम करना होता है. यह सबसे बड़ा कारण है कि समस्या गंभीर क्यों है.

भारत में ये समस्या कितनी फैली हुई है?

सटीक आंकड़े तो नहीं है लेकिन माकूल तौर पर भारत में एक से तीन करोड़ के बीच बाल मजदूर हैं. और जो काम ये बच्चे करते हैं वह भारत की अर्थव्यवस्था में असंगठित है. असंगठित क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा काम होगा, जिसमें बच्चे नहीं लगे हुए हों. हालांकि घरेलू नौकर, कालीन बुनना, खेती सबसे खराब कामों में शामिल हैं.

इसके पीछे मुख्य कारण क्या हैं?

पहले कारण तो गरीबी और जातिप्रथा हैं. मैंने मजदूरी करने वाले जितने बच्चों के मामले दर्ज किे हैं, वे सब बेहद गरीब और पिछड़ी जातियों से नाता रखते हैं. पिछड़ी जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति या फिर मुसलमान समुदाय में कई लोग ऐसे हैं जिनके पास कोई स्थिर आय, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और मूल अधिकार की कोई संभावना नहीं है. न तो उनके पास जमीन है और ना ही बैंकों से संर्पक. वे हमेशा गंभीर स्थिति में ही रहते हैं. बीमारी, बाढ़, परिवार में किसी की मौत से ये सीधे मानव तस्करों या ठेकेदारों के हाथ पहुंच जाते हैं जो गुलामों के बदले पैसे देते हैं.

इनके कारण परिवार सालों साल गुलामी में पिस सकते हैं. ठेकेदार बच्चे के बदले मिलने वाली नौकरी की तनख्वाह का कुछ हिस्सा देने का भी प्रस्ताव रखता है. इससे बच्चे या उसके परिवार को कभी कोई फायदा नहीं होता. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कम मजदूरी और कम नियंत्रित बाजार को पोसती है. यही बाजार हमें भारत में भी दिखाई देता है. इसलिए भारत के लिए मांग काफी है क्योंकि उसके सबसे संवेदनशील नागरिक कम पैसे में मजदूरी करने वाले हो गए हैं.

सरकार अभी तक इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से सुलझा क्यों नहीं पाई है?

कई अच्छे कानून हैं जो बाल मजदूरी और अन्य शोषण वाली मजदूरी को खत्म करने लिए पास किए गए. लेकिन टिकाऊ स्तर पर बाल मजदूरी को खत्म करने की प्रभावी कोशिश नहीं हुई. इन बच्चों को काम पर रखने वाले लोगों को अनिवार्य दंड नहीं दिया गया. गरीबी, जातिप्रथा जैसी समस्याओं को खत्म करने की गंभीर कोशिशें नहीं हुई. देश में इन समस्याओं के कारण कई समुदाय, महिलाएं और बच्चे पिछड़े हुए हैं. भारत के पास संसाधन हैं, न्याय और मानवाधिकार की परंपरा है और बाल मजदूरी खत्म करने के लिए बना हुआ ढांचा भी है. लेकिन इसे सच्चाई में बदलने के लिए जरूरी आक्रोश पैदा नहीं हुआ है. इस समय मुझे लगता है कि भारतीय नागरिकों को बाल मजदूरी खत्म करने के लिए मजबूत सामाजिक अभियान चलाना चाहिए. लक्ष्य हासिल करने का यही इकलौता रास्ता है.

सिद्धार्थ कारा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट के निदेशक हैं.