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चेतावनी थी मैर्केल की जासूसी

मार्सेल फुर्स्टेनाउ/एमजे२४ अक्टूबर २०१४

एक साल पहले पता चला था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के फोन की टैपिंग की थी. उसके बाद से टैपिंग कांड में प्रगति तो हुई है लेकिन डॉयचे वेले के मार्सेल फुर्स्टेनाउ को और ज्यादा की उम्मीद है.

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तस्वीर: Reuters

पिछला एक साल इंकारों और घटनाओं को कमतर आंकने का साल रहा है. चांसलर कार्यालय के तत्कालीन प्रमुख रोलांड पोफाला ने 2013 की गर्मियों में एनएसए की जासूसी में जर्मन दफ्तरों के शामिल होने से इंकार किया था. उन्होंने इस आरोप को ठुकरा दिया कि जर्मन खुफिया एजेंसी बीएनडी ने अपने अमेरिकी साथियों को अवैध रूप से जर्मन नागरिकों के बारे में जानकारी दी. अंगेला मैर्केल के करीबी राजनीतिज्ञ ने दावा किया था कि डाटा सुरक्षा का सौ फीसदी पालन किया गया था. उन्होंने लिखित रूप से यह भी कहा था कि अमेरिकी और ब्रिटिश खुफिया एजेंटों ने जर्मन कानूनों का हमेशा पालन किया. ऐसा चुनाव प्रचार के दौरान जर्मन जनमत को शांत करने के लिए किया गया था.

एनएसए के व्हिसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के रहस्योद्घाटनों पर मासूमियत का नाटक उस समय के गृह मंत्री हंस-पेटर फ्रीडरिष की सुलह वाले बयान से मेल खाता था. वे एनएसए के सही बर्ताव की पुष्टि के लिए खास तौर पर अमेरिका गए थे. एक साल पहले लग रहा था कि यह कांड सिर्फ डाटा सुरक्षा अधिकारियों और साजिश का शक करने वालों के दिमाग की उपज था. मैर्केल और उनके सहयोगियों को इस मुद्दे को चुनाव अभियान से बाहर रखने में कामयाबी मिल गई थी.

दोस्तों की जासूसी?

एक महीने बाद चुनाव में जीत के बाद स्थिति बदल गई. मैर्केल का मोबाइल फोन भी एनएसए के निशाने पर था. लाखों निर्दोष नागरिकों का डाटा इकट्ठा करने की रोशनी में जो मामला छोटा सा था, वह अचानक बड़ा कांड बन गया. मैर्केल का प्रसिद्ध बयान, "दोस्तों के बीच जासूसी, ये नहीं चल सकता", तब भी सही था और आज भी सही है. बारह महीने बाद भी यह भी सही है कि उसमें एक गलत संकेत था. इस मायने में कि मौलिक अधिकार सब पर समान रूप से लागू होते हैं. मेरे मोबाइल फोन की टैपिंग उतनी ही गलत है जितनी चांसलर की निजता का हनन.

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तस्वीर: DW

कितनी अच्छी बात है कि पूरी निगरानी के जोश में एनएसए को दुनिया की सबसे ताकतवर महिला के सामने भी कोई झिझक नहीं थी. तब से जर्मन राजनीति की प्रतिक्रिया उतनी कायराना नहीं है, दरअसल अब वह दृढ़ हो गई है. यह खासकर विपक्ष के लिए भी लागू होता है जिनके लिए रवैया तय करना आसान है. ग्रीन और लेफ्ट पार्टी के दबाव का ही नतीजा है कि इस साल के शुरू से एक संसदीय आयोग एनएसए और बीएनडी के कारनामों की जांच कर रहा है.

चुनिंदा नजरिया

फाइन न देकर या फाइलों के हिस्सों को काला कर संसदों को रोकने की चांसलर कार्यलय की निरंतर कोशिशें खीझ पैदा करने वाली हैं. इससे सरकार की विश्वसनीयता खतरे में पड़ती है. हालांकि इस बीच इस रवैये के बदलने के संकेत हैं. बर्लिन से एनएसए की जासूसी का समन्वय करने वाले एजेंट का निष्कासन भी एक अच्छा संकेत था. संभवतः सांकेतिक से ज्यादा. अमेरिकी पक्ष इससे कितना कम प्रभावित दिखता है यह उसका जर्मनी के साथ नो स्पाई समझौते से इंकार करना दिखाता है.

इस बात के बहुत से संकेत हैं कि अमेरिका जर्मनी जैसे दोस्ताना देशों के खिलाफ भी अपनी जासूसी की गतिविधियां जारी रखे हुए है. ऐसा लगता है कि जर्मनी ने अपने हाल से समझौता कर लिया है. इसलिए यह एक अच्छा संकेत है कि जर्मन गृह मंत्री थोमस दे मेजियेर ने खुफिया एजेंसी की जासूसी प्रतिरोध के लिए 360 डिग्री वाले नजरिए की घोषणा की है. इसका मतलब यह है कि सिर्फ पूरब की ओर ही नहीं बल्कि पश्चिम की ओर भी आलोचनात्मक नजरिया अपनाया जाएगा. रूसी और चीनी खुफिया एजेंसियों के प्रति जर्मनी हमेशा से संदेहशील रहा है. अब देखना होगा कि अगले साल एनएसए पर घरेलू खुफिया एजेंसी फरफासुंग्सशुत्स की रिपोर्ट में क्या रहता है. इस साल उसमें कुछ भी नहीं था, हालांकि सामग्री तो बहुत थी.