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एड्स से लड़ना नैतिक कर्तव्य: लॉरिश

१ दिसम्बर २०१४

एड्स से लड़ना बड़ी चुनौती है. सिर्फ पांच साल में एचआईवी संक्रमित लोगों की संख्या जिनकी एंटीरेट्रोवायरल दवाओं से चिकित्सा हो रही है, सवा करोड़ से बढ़कर ढाई करोड़ हो जाएगी. यह कहना है यूएनएड्स के उप प्रमुख लुइस लॉरिश का.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

डीडब्ल्यू: एचआईवी के नए संक्रमण की तादाद दुनिया भर में गिर रही है, सिर्फ युवा पुरुष ही अपवाद हैं, क्यों?

लुइस लॉरिश: यह एक वैश्विक रुझान है. एशिया, यूरोप, और संयुक्त राज्य अमेरिका में युवा समलैंगिक मर्दों में संक्रमण की संख्या बढ़ रही है. वे पुरानी पीढियों की तरह अपनी सुरक्षा नहीं करते. इस समय एकमात्र सच्ची वैश्विक महामारी युवा समलैंगिक मर्दों के बीच एचआईवी का प्रसार है. इससे यूएनएड्स भी अत्यंत चिंतित है.

क्या भावी अभियानों में इस रुझान का भी ध्यान रखा जाएगा?

निश्चित तौर पर. हमें इस ग्रुप पर ध्यान देना होगा और उनके बीच एड्स टेस्ट करवाने के लिए प्रचार करना होगा. रोग का पता चलना बहुत जरूरी है. जो समय रहते एचआईवी का टेस्ट करा लेता है, उसके इलाज की भी अच्छी संभावना होती है. दुनिया भर में करीब 2 करोड़ लोग हैं जो एचआईवी से संक्रमित हैं, लेकिन उन्हें इसका पता नहीं है, क्योंकि वे टेस्ट नहीं करवा रहे हैं. ये दुनिया भर में एचआईवी संक्रमित लोगों के आधे से ज्यादा है.

क्या एड्स के खिलाफ लड़ाई में उत्तर और दक्षिण में सफलता की दर अलग अलग है?

अफ्रीका महादेश इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है, लेकिन वहां बहुत अच्छे नतीजे भी देखे जा रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी और एड्स पीड़ित सबसे ज्यादा लोगों का इलाज हो रहा है. वहां इलाज के नए रूपों का इस्तेमाल हो रहा है और राजनीतिक रणनीतियां भी दिख रही हैं.

Dr. Luiz Loures
डॉ. लुइस लॉरिशतस्वीर: Getty Images/M. Kovac

और ब्राजील, क्या वह अभी भी दुनिया भर में एड्स से लड़ने की मिसाल है?

निःसंदेह. ब्राजील ऐतिहासिक भूमिका निभा रहा है और भविष्य में यह भूमिका और अहम हो जाएगी. दक्षिणी गोलार्द्ध में ब्राजील पहला देश है जिसने एड्स के इलाज में 90-90-90 की नई रणनीति पर अमल किया है. इसका मतलब है कि एचआईवी संक्रमित 90 फीसदी लोगों का टेस्ट किया गया है, 90 फीसदी संक्रमित लोगों का इलाज किया गया है और इलाज हुए 90 फीसदी लोगों में वायरस इतना कम है कि संक्रमण होने का कोई खतरा नहीं है.

बहुत से दूसरे देशों में क्या सभी संक्रमित लोगों को दवा और इलाज उपलब्ध कराने के लिए धन की कमी नहीं है?

स्वाभाविक रूप से कम आय वाले देशों को ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मदद की जरूरत है. महामारी से लड़ने की राजनीतिक इच्छा ज्यादातर प्रभावित देशों में मौजूद है, लेकिन चिंता करने वाली बात है कि पश्चिमी देशों की वित्तीय मदद में कमी आ रही है. इस एकजुटता को छोड़ा नहीं जाना चाहिए, यह नैतिक कर्तव्य है.

कितने धन की कमी है?

इस समय अंतरराष्ट्रीय समुदाय, गरीब और धनी देशों को मिलाकर, एड्स के खिलाफ संघर्ष में 19 अरब डॉलर खर्च कर रहे हैं. अब तक इस मद पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. 2020 तक इसे बढ़कर 38 अरब डॉलर हो जाना चाहिए. लेकिन हम इसका उल्टा देख रहे हैं. सच्चाई यह है कि यह रकम स्थिर है या घट रही है. ऐसा किसी हालत में नहीं होना चाहिए.

ब्राजील ने विश्व व्यापार संगठन में एंटीरेट्रोवायरल दवाओं के पैटेंट को रद्द करवाने में कामयाबी पाई है और इसके साथ जेनेरिक दवाओं के जरिए सस्ते इलाज को संभव बनाया है. क्या भविष्य में पैटेंट पर नए विवाद होंगे?

पैटेंट का मामला महत्वपूर्ण है, क्योंकि नई दवाएं आ रही हैं जो बेहतर हैं और दुनिया भर में बड़ी उम्मीदें पैदा कर रही हैं, लेकिन साथ ही बहुत महंगी भी हैं. गरीब देश जान बचाने वाली इन दवाओं की कीमत का बोझ नहीं उठा सकते. इसका समाधान पैटेंट के अधिकार पर नई बहस में है.

एड्स के खिलाफ टीका कब आएगा?

इसकी अभी कोई संभावना नहीं है, इस तरह के रिसर्च पर बहुत कम खर्च किया जा रहा है. जहां तक इलाज का सवाल है तो संभावनाएं ज्यादा सकारात्मक हैं. मुझे उम्मीद है कि पांच साल में हम वहां होंगे.

डॉक्टर के रूप में प्रशिक्षित ब्राजील के लुइस लॉरिश 1996 से यूएनएड्स प्रोग्राम के लिए काम कर रहे हैं. ब्राजील में वे स्वास्थ्य मंत्रालय में राष्ट्रीय एड्स रणनीति बनाने के लिए जिम्मेदार थे. 2013 से वे यूएनएड्स संगठन के प्रमुख हैं.

इंटरव्यू: फर्नांडो कॉलिट