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योजनाओं को लागू करना जरूरी

२४ जनवरी २०१५

किसी देश के नौनिहाल ही उसका भविष्य होते हैं. और जब नौनिहाल ही कुपोषण के शिकार हों तो उस देश के स्वास्थ्य का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है. दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत भी इसी विडंबना के दौर से गुजर रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे में यह देश पहले से ही पिछड़ा है. भारत की अस्सी फीसदी आबादी गांवों में रहती है. लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से ग्रामीण इलाके बदहाल हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत केंद्र सरकार ने आम लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने की जो पहल शुरू की है, वह अब तक नाकाफी ही नजर आ रही है. ग्रामीण इलाकों में मीलों दूर तक अव्वल तो कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. और जहां ऐसे केंद्र हैं भी वहां प्रशिक्षित डॉक्टरों और नर्सों की पर्याप्त कमी है. ऐसे में खांसी और बुखार जैसी आम बीमारियों के इलाज के लिए भी ज्यादातर ग्रामीण आबादी नीम-हकीमों और झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं पर निर्भर है. यह स्थिति किसी भी देश के लिए खतरनाक है. भारत को भी इसी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.

मूल वजह गरीबी

कुपोषण की मूल वजह गरीबी है. इसकी वजह से ही लोगों को पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है और बच्चे कुपोषित पैदा हो रहे हैं. गरीबी हटाने की तमाम परियोजनाओं के बावजूद वह खत्म होने की बजाय लगातार बढ़ ही रही है. इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि एक ओर जहां हर साल सरकारी गोदामों में 44 हजार करोड़ रुपये का अनाज सड़ जाता है, वहीं 30 करोड़ लोग हर रोज भूखे रहने को मजबूर हैं? कुपोषण से निपटने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को ठोस रणनीति बनानी होगी.

देश में बच्चों के स्वास्थ्य-संबंधी आधारभूत ढांचे का भारी अभाव है. इसके अलावा इस मद में धन की भी कमी है. केंद्र की विभिन्न स्वास्थ्य परियोजनाओं में स्वास्थ्य पर तो जोर दिया जाता है, लेकिन उसमें कुपोषण की अनदेखी की गई है. देश के तमाम मेडिकल कॉलेजों और नर्सिंग कालेजों में भी पोषण की खास ट्रेनिंग नहीं दी जाती. ऐसे में इन डिग्रीधारक डॉक्टरों और नर्सों को भी बाल स्वास्थ्य और पोषण के सही तरीकों के बारे में कोई खास जानकारी नहीं होती. नतीजा यह होता है कि पोषण का जिम्मा डायटीशियनों और न्यूट्रीशियनिस्टों को सौंप दिया जाता है. अब ग्रामीण इलाकों में जहां डॉक्टर ही नहीं मिलते, वहां डायटीशियन और न्यूट्रीशियनिस्ट होने की तो कल्पना तक नहीं की जा सकती. स्वास्थ्य केंद्रों में बच्चों के पोषण के लिए जरूरी दवाओं और विटामिनों की भी भारी कमी है. गरीबी के चलते ज्यादातर माता-पिता बाहर से इनको खरीदने में असमर्थ हैं.

गले तक भ्रष्टाचार

देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) खुद गले तक भ्रष्टाचार में डूबी है. इसलिए वह आम लोगों तक भोजन पहुंचाने के अपने मकसद में नाकाम ही साबित हुई है. यह तथ्य है कि ग्रामीण इलाके की कम से कम 30 फीसदी आबादी को अब तक दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती. जब खुद ही खाने के लाले पड़े हों, तो बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता भला दिमाग में कहां से आएगी? नतीजतन कुपोषण की चपेट में आने वाले बच्चों की तादाद लगातार बढ़ रही है. अब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने पीडीएस चलाने वाले भारतीय खाद्य निगम में आमूलचूल बदलाव का फैसला किया है. लेकिन इससे रातोंरात किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.

आखिर देश को इस स्थिति से उबारने और तेजी से बढ़ते कुपोषण पर रोक लगाने का तरीका क्या है? स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के साथ ही सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह सुविधा देश के हर नागरिक तक पहुंचे. इसके साथ ही माताओं को बच्चे के सही पोषण की जानकारी देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक जागरुकता अभियान चलाया जाना चाहिए. देहाती इलाकों में अब भी कई महिलाएं निरक्षर हैं. उनके लिए दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरिए यह अभियान चलाना होगा. जागरुकता का अभाव भी बढ़ते कुपोषण की एक वजह है. मिसाल के तौर पर डायरिया होने की स्थिति में बच्चे को तरल भोजन दिया जाना चाहिए और उसका भोजन सामान्य होना चाहिए. लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे)-3 के मुताबिक, दस में से नौ माएं इस सलाह का पालन नहीं करतीं.

प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी

सरकार को इस पहलू का भी ध्यान रखना होगा कि सिर्फ भरपेट भोजन से ही कुपोषण की समस्या का अंत नहीं होगा. बेहतर स्वास्थ्य के लिए बेहतर व पौष्टिक भोजन जरूरी है. सरकार को माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर खास ध्यान देना होगा. देश में महिला स्वास्थ्य की स्थिति काफी चिंताजनक है. हर साल उचित पोषण के अभाव में लाखों गर्भवती महिलाएं दम तोड़ रही हैं. सिर्फ कागजों पर नीतियां और योजनाएं तैयार करने से स्थिति नहीं सुधरेगी. उनको जमीनी स्तर पर लागू करना जरूरी है.

देश के मेडिकल कॉलेजों और नर्सिंग कॉलेजों में कुपोषण से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है. खासकर ग्रामीण इलाकों में पहले तो पर्याप्त तादाद में स्वास्थ्य कर्मचारियों की तैनाती सुनिश्चित करनी होगी और साथ ही उनको कुपोषण पर अंकुश लगाने की खास ट्रेनिंग देनी होगी. स्वास्थ्य केंद्रों तक जरूरी पोषण से संबंधित दवाओं की सप्लाई भी सुनिश्चित करनी होगी. भोजन के अधिकार के तहत यह सुनिश्चित करना होगा कि सबको पर्याप्त भोजन मिले. लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है राजनीतिक इच्छाशक्ति. इसके बिना तमाम स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचना मुश्किल है. जब तक ऐसा नहीं होता तब तक देश का भविष्य लगातार कुपोषण का शिकार बना रहेगा.

ब्लॉग: प्रभाकर