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यूक्रेन की तमन्ना अधूरी

१० सितम्बर २००८

यूक्रेन-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के साथ यूक्रेन की बहुत उम्मीदें जुड़ी हुई थीं. लेकिन यूरोपीय संघ का सदस्य बनने की यूक्रेन की इच्छा को लेकर यूरोपीय संघ फ़िलहाल बहुत उत्साहित नहीं है.

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पेरिस में बार्रोसो, सारकोज़ी और युशचेंकोतस्वीर: AP

यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर युशचेंको पेरिस से खाली हाथ घर नहीं लौट रहे हैं. लेकिन यूक्रेन- यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ का सदस्य बनने की यूक्रेन की इच्छा को ज्यादा बढ़ावा नहीं मिला. दोनों पक्षों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गये. इस बात पर सहमति बनी कि यूक्रेन और यूरोप के देश समान आदर्शों का पालन करते हैं और उनके इतिहास भी एक समान हैं. यह इस लिए ज़रूरी है, क्योंकि यूरोपीय संघ की स्थापना-संधि के आधार पर यह तय किया गया था कि सिर्फ एक ऐसा देश, जो इन मूल्यों-आदर्शों का सम्मान करता है और उन्हें प्रोत्साहन देता है, वही यूरोपीय संघ का सदस्य बन सकता है. ब्रिटेन, पोलैंड और स्वीडन जैसे देशों की यूरोपीय संघ से मांग थी कि उसे यूक्रेन की सदस्यता को लेकर एक स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए. इसे रूस की तरफ यूरोपीय एकजुटता के प्रदर्शन के रूप में देखा जा सकता था और रूस के महत्वकांक्षी क्षेत्रीय लक्ष्यों का विरोध हो सकता था. इन देशों का यह भी मानना था कि जॉर्जिया के साथ विवाद की वजह से और दक्षिण ओसेतिया और अबखाज़िया को मान्यता देने के कारण रूस को यूक्रेन के क्रिमिया इलाके पर अपना अधिकार जताने का मौक़ा नहीं मिलना चाहिये. क्रिमिया 1945 तक रूस का हिस्सा था. लेकिन जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसे देशों ने यूरोपीय संघ को ऐसा न करने की चेतावनी दी. उनका मानना है कि यूक्रेन अभी भी राजनैतिक तौर पर पूरी तरह स्थिर नहीं है और रूस को उकसाया नहीं जाना चहिए. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी ने इसी पर बल देते हुए कहाः

"मैं दुबारा कहता हूँ-- हम, यूरोप वाले, रूस के साथ शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं. हम बातचीत द्वारा, कूटनीति के द्वारा और राजनीति के द्वारा एक-दूसरे को समझेंगे, सैनिक रास्ते से तो कतई नहीं. बिल्कुल नहीं. जहाँ तक यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता का प्रश्न है, तो हम यूरोप वालों की नज़र से उस पर कोई सौदेबाज़ी नहीं हो सकती".

सम्मेलन के बाद यही साफ होता है कि यूक्रेन की यदस्यता और रूस के साथ व्यवहार पर यूरोपीय संघ बंटा हुआ है.