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जर्मनी में कमसिन दिखने की होड़

१ जून २००९

क्या फिट होने का मतलब पतला दुबला होना है या ज़्यादा आकर्षक दिखना? कमसिन दिखने की होड़ में आखिर क्यों पड़ी हैं दुनिया भर की ज़्यादातर महिलाएं?

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क्या यह सुंदर है?तस्वीर: DW-TV

जर्मनी में हर साल दस हज़ार महिलाएं डायटिंग की इंतहा पार कर कमज़ोरी से मौत का शिकार बन जाती हैं. अनोरैक्सिया नर्वोसा, बुलिमिया नर्वोसा या आडिपोसितास - ये उन बीमारियों के वैज्ञानिक नाम हैं जो खान पान में गड़बड़ी की वजह से होती हैं. एक तरफ ज़रूरत से कहीं ज़्यादा खाना, दूसरी तरफ खाना बंद कर देना. अनोरैक्सिया नर्वोसा की शिकार वे महिलाएं बनती हैं, जो इतनी डायटिंग करतीं हैं कि उनके बदन का वज़न तीस किलोग्राम तक घट जाता है. बुलिमिया की शिकार वे महिलाएं होतीं हैं जो खाती तो हैं लेकिन मोटा होने के डर से गले में उंगली डालकर सारा खाना उलट देने की कोशिश करती हैं. आडिपोसितास की शिकार वे महिलाएं बनती हैं जो बहुत ही ज़्यादा मोटी होती हैं, यानी उनका वज़न सामान्य वज़न से कम से कम 30 किलोग्राम ज़्यादा ही होता है. विडंबना यह है कि भारत जैसे देशों में महिलाएं मोटी होती जा रही हैं जबकी कई पश्चिमी देशों में अति डायटिंग करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. जर्मनी के बॉन शहर के बाज़ार में हमने कुछ महिलाओं से उनके डायटिंग अनुभवों के बारे में पूछा तब एक किशोरी ने कहा कि उसने ग्रुप प्रैशर की वजह से डायटिंग शुरू की. जब सभी दोस्त दुबले होते हैं, तब आपको भी लगता है कि उनके जैसा होना चाहिए. उनके साथ होने पर आपको अचानक लगता है कि आप खुद कितने मोटे हैं.

बॉन में मनोचिकित्सक डॉक्टर काथरीन इंबियैरोवित्स कहतीं हैं कि दुख की बात यह है कि जर्मनी में जिस उम्र में लड़कियां डायटिंग शुरू करती हैं वह काफी कम होती जा रही है:

"मै तो कहूंगी कि सभी महिलाओं ने कभी न कभी डायटिंग की होगी. ज़ाहिर सी बात है कि उन सभी महिलाओं को फिर समस्या नहीं होती है, लेकिन जो महिला बहुत ही आक्रामक तरीके से डायटिंग करती हैं वह बदन और सेहत के लिए जोखिम है. कई लड़कियां तो बतातीं हैं कि वह प्राईमरी स्कूल से ही डायटिंग शुरू कर देतीं हैं."

Magersucht
पतली महिलाओं को फिरभी लगता है कि वह मोटी हैंतस्वीर: PA/dpa

कारणों की तालाश

ऐसा तब हो रहा है जब मेडिकल साइंस में ये बात पहले से साफ़ है कि जो महिलाएं खान पान में गड़बड़ी की शिकार होतीं हैं, उनमें कई बड़ी मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हुई होती है. वे उन्हें ज़ाहिर नहीं कर सकतीं हैं. खासकर किशोर उम्र से शरीर में बदलाव आने लगते हैं. आम तौर पर इस वक्त ज़्यादातर लड़कियों का आत्मविश्वास कम होता है. स्कूल में मुश्किलें, मां बाप के साथ झगड़ा - यह सब खान पान में गड़बड़ी के छिपे हुए कारण हो सकते हैं. डॉक्टर काथरीन इंबियैरोवित्स का कहना है:


"खान पान में इस अति नियंत्रण की एक बड़ी वजह सामाजिक दबाव है. पश्चिमी देशों में हक़ीकत यह है कि लोग मोटे होते जा रहे हैं. लेकिन जो आदर्श है वह एक ऐसे छरहरेपन का है जो सेहत के लिए खतरनाक है. यानी ख़्वाहिश और हकीकत के बीच खाई बढ़ती जा रही है."

खाना न खाना एक बड़ी सफलता

जब ज़िंदगी इन महिलाओं के नियंत्रण में नहीं होती है, तो खाना वो च़ीज़ बन जाती है जिस पर उनका बस रह जाता है. सारा दिन खाना न खाकर ऐसी महिलाएं इसे एक सफलता और उपलब्धि मानती हैं जिस पर उन्हें नाज़ है. देह की चेतावनी को वह नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करतीं हैं. बाल पतले हो जाते हैं, त्वचा का रंग बदल जाता है, वे बहुत कमज़ोर महसूस करतीं हैं. उनके मासिक चक्र में बदलाव आ जाता है या वह बंद हो जाता है.

मुश्किल इलाज

सबसे मुश्किल है खान पान में इस जुनूनी नियंत्रण से होने वाली गड़बड़ियों का इलाज क्योंकि शिकार बनी महिलाएं अपने शरीर पर अपना नियंत्रण भी बनाए रखना चाहतीं हैं. स्वाभाविक भूख को दबाकर देह की भव्यता और चमकाने का ये रास्ता अपनी ही देह और अपनी ही आत्मा के साथ खिलवाड़ जैसा है. इस ख़तरनाक रास्ते से ऐसी लड़कियों और ऐसी महिलाओं को समझ के रास्ते पर लाना भी एक चुनौती ही है.

रिपोर्ट: प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य