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भारत का सबसे महंगा पेंटर नहीं रहा

३ जुलाई २००९

मशहूर पेंटर तैयब मेहता नहीं रहे. वो 84 साल के थेऔर दिल की बीमारी से जूझ रहे थे. गुरुवार को उनका निधन हो गया. 1925 में गुजरात में जन्मे तैयब मेहता देश में प्रगतिशील कला आंदोलन में सक्रिय कलाकारों में थे.

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पद्म भूषण तैयब मेहतातस्वीर: AP

तैयब के कला जीवन की शुरुआत निराली थी. उन्होंने सबसे पहले फ़िल्म दुनिया में अपना करियर आज़माया. वहां से कुछ बनता न देख 1952 में जेजे स्कूल ऑफ आर्टस से उन्होंने डिप्लोमा किया. कला की शिक्षा के लिए तैयब लंदन में पांच साल रहे. उन्होंने अमेरिका का दौरा भी किया. और पश्चिम के कला संस्कारों को नज़दीक से समझने की कोशिश की. 1970 के दशक में तैयब मेहता ने आम इंसान के द्वंद्व का विलक्षण विरूपण करते हुए एक फ़िल्म भी बनाई- कुदाल जिसे पुरस्कृत किया गया औऱ काफ़ी सराहा गया.

तैयब मेहता महान चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन और सैयद हैदर रज़ा के समकालीन थे. चर्चा से दूर ख़ामोशी से काम करते रहे तैयब का नाम कला दुनिया से इतर आम समाज के बीच सहसा 2002 में गूंजा. यूं कला की दुनिया में भी वो गूंज विस्फोट से कम न थी. और उसकी वजह भी ख़ास थी. उनकी सेलिब्रेशन नाम की पेंटिंग तीन लाख डॉलर से ज़्यादा में बिकी. दुनिया की कला बोली में इतनी महंगी कोई पेंटिंग नहीं बिकी थी. 2005 में उनकी प्रसिद्ध कृति काली एक करोड़ रुपये में बिकी और 2007 में तो कला जगत और बाकी लोगों भौंचक्के ही रह गए जब उनकी क्रिस्टीन नाम की तस्वीर की एक नीलामी में करोड़ो डॉलर की बोली लगी. 2008 में भी उनकी एक पेंटिंग भी लाखों डॉलर की बोली के बाद खरीदी गयी.

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अस्त हुआ एक सितारातस्वीर: AP

समकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब ही अकेले पेंटर थे जिनका काम इतनी अकल्पनीय कीमतों में बिका है.

कला के किनारों पर सक्रिय बाज़ार और उसे भयानक हलचल का संसार बना चुके नीलामीघरों के इन प्रतिस्पर्धी गलियारों के कोहराम से बाहर तैयब मेहता एक शांत, ख़ामोश, बेचैन, सजग और जनचेतना के कलाकार थे. प्राचीन स्मृतियों के चित्रण और मिथकीय चरित्रों से अपनी कला का रूप बनाने वाले तैयब अपनी कृतियों में अवसाद और उदासी के बीच शौर्य, साहस, जीवंतता और विपुल ऊर्जा रेखाओं के लिए जाने जाते हैं. उनकी पेंटिंग काली हो या महिषासुर, वे आधुनिक चिंताओं को संबोधित कलाकृतियां हैं और उनकी कलात्मक बारीकियां बेजोड़ हैं.

तैयब के नज़दीकी लोगों का कहना है कि वो अपने कला कर्म के प्रति इतने ख़ामोश समर्पण वाले थे कि संतुष्ट न होने तक अपनी पेंटिंग्स को कला दीर्घाओं में जाने से बचाते रहते हैं. सृजनात्मकता की अपनी ज़िद की ख़ातिर उन्होंने कई कैनवस नष्ट भी किए. उनका कहना था कि सार्वजनिक होने वाली कला में कोई खोट नहीं रहना चाहिए. रिक्शावाले से लेकर अपनी काली तक तैयब मेहता भारतीय कला स्मृति में हमेशा जीवित रहेंगे.

रिपोर्टः शिवप्रसाद जोशी

संपादनः ए जमाल