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नई मंज़िलों की तलाश, दुविधा के दोराहे

२० दिसम्बर २०१०

विज्ञान की विभिन्न शाखाओं को जोड़ने का ज़िक्र सनसनीख़ेज़ ख़बरों के इस तेज़ दौर में कहीं गुम होता सा लगे, लेकिन सिंथेटिक बायोलॉजी के काम को आगे बढ़ाने के प्रस्ताव की ख़बर दुनिया के भविष्य के लिए भारी महत्व की हो सकती है.

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तस्वीर: Max-Planck-Institut

व्हाइट हाउस ने घोषणा की है कि सिंथैटिक बायोलॉजी यानी संश्लेषित या कृत्रिम जीवविज्ञान के क्षेत्र से हो सकने वाले ख़तरे सीमित तरह के हैं और कि उसके काम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. यह सिफ़ारिश राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा संगठित एक विशेषज्ञ समिति की है, जिसने अपनी पहली रिपोर्ट में कहा है कि कृत्रिम जीवविज्ञान में महत्वपूर्ण, लेकिन सीमित सफलताएं हासिल की जा सकती हैं, जबकि उससे पैदा होने वाले ख़तरे कम हैं.

13 सदस्यों वाली इस समिति की अध्यक्ष एमी गुटमैन ने कहा है कि समिति ने एक बीच का रास्ता चुना है, जिस पर चलते हुए इस वैज्ञानिक क्षेत्र में देश की सरकार की देखरेख में प्रगति की जा सके. गुटमैन ने कहा कि उनकी समिति की निगाह में कृत्रिम जीवविज्ञान में किए जाने वाले काम के बारे में सबसे पहला सिद्धांत ही आम आदमी का फ़ायदा और ख़तरों से बचने के उपाय है. "इस सिद्धांत के मूल में है जनता के संभावित हित को अधिक से अधिक बढ़ाना और साथ ही साथ लोगों को पहुंच सकने वाले संभावित नुक़सान को कम से कम करना."

संश्लेषित या कृत्रिम जीवविज्ञान नाम असल में खोज के एक ऐसे उभरते क्षेत्र को दिया गया है जिसमें जीवविज्ञान, इंजीनियरिंग, जैनेटिक्स, रसायन और कंप्यूटर विज्ञान के तत्वों का सम्मिश्रण रहता है. मुख्य रूप से इसमें जीवविज्ञान की जानकारी और तकनीकों को इंजीनियरिंग की तकनीकों से जोड़कर काम किया जाता है. होने वाली सफलताएं, कृत्रिम रूप से तैयार किए गए डीएनए पर आधारित होती हैं जिससे नई जैवरासायनिक प्रणालियां या जीव तैयार किए जा सकें. ऐसे जीव जिनमें कुछ अलग, नई और बेहतर विशेषताएं हों.

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तस्वीर: Kay Grünewald, Max-Planck-Institut

इस क्षेत्र में एक बड़ी सफलता की घोषणा इसी वर्ष मई में की गई थी. जे क्रेग वैंटर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक बैक्टीरिया के एक छोटे से सेल की प्रति बनाकर उसके पूरे जीनोम को ही बदल दिया, उसे एक अन्य प्रजाति के एक जीवित सेल में प्रविष्ट किया और इस तरह एक नए और कृत्रिम जीव की रचना की बात कही.

अनेक लोगों ने इसकी तीखी आलोचना की और इसे भगवान बनने की कोशिश का नाम दिया. बिना पूरी तरह यह सोचे-समझे कि इस आविष्कार के क्या नतीजे हो सकते हैं. यह भी कि इससे प्रकृति की सहज व्यवस्था ही बदल सकती है. विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वैंटर के वैज्ञानिक दल ने नए जीवन की रचना नहीं की थी, बल्कि पहले से मौजूद एक जीवन-प्रकार में तब्दीली भर की थी.

रिपोर्ट के अनुसार, अनेक वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सफलता वैज्ञानिक दृष्टि से जीवन के निर्माण की नहीं थी, क्योंकि इस खोज के लिए एक ऐसे सक्रिय और प्राकृतिक जीव के सैल की आवश्यकता थी, जो कृत्रिम जीनोम को स्वीकार कर ले.

विशेषज्ञ समिति के उपाध्यक्ष जिम वैगनर स्वीकार करते हैं कि इस खोज को लेकर जारी उत्साह के साथ-साथ चिंताएं बाक़ायदा मौजूद हैं. ऐटलैंटा, जॉर्जिया के ऐमरी विश्वविद्यालय के अध्यक्ष वैगनर के शब्दों में, "बेशक़ यह सरोकार मौजूद है कि अगर इस टेक्नॉलॉजी से बनाए गए उत्पाद प्रकृति में मौजूद जीवों से अधिक सशक्त हुए, तब क्या होगा. या यह भी कि अगर इस टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल द्वेषपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया गया, तो? और जैसाकि कुछ लोगों ने पूछा है कि इस टेक्नॉलॉजी का उपयोग करके हम जीवन की प्राकृतिक व्यवस्था से किस हद तक खिलवाड़ कर रहे होंगे?"

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तस्वीर: MPI für Informatik / Bock

लेकिन समिति के अनुसार कृत्रिम जीवविज्ञान मानव के हित के लिए, जैविक और इंजीनियरिंग सिद्धांतों का अपूर्व इस्तेमाल करने का अवसर प्रस्तुत करता है. स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत, विशिष्ट समस्याओं और विशिष्ट मरीज़ों के लिए तैयार वैक्सीनें और दवाएं, पर्यावरण को स्वच्छ करने और रखने वाले तत्व और मौसमों का मुक़ाबला कर पाने वाली फ़सलें, विज्ञान के इस प्रगतिशील क्षेत्र के केवल कुछ उपयोगों में से हैं.

वैगनर का कहना है, "इच्छानुसार इस्तेमाल किए जाने वाले छोटे-छोटे कारखानों की कल्पना कीजिए, जहां ईंधन, दवाएं, खाद और आहार-सामग्री, हार्मोन और ऐंजाइम उत्पादित होंगे. जीन-संबंधी ऐसी वैक्सीनों की भी कल्पना कीजिए, जिनके द्वारा जैविक कार्यकलाप में नियंत्रित रूप से निर्भरता के साथ फेरबदल किया जा सकेगा या उसमें नई गतिविधियां जोड़ी जा सकेंगी."

लेकिन समिति खतरों की संभावना से इनकार नहीं करती और इसमें देश की सरकार की अहम भूमिका पर जोर देती है. रिपोर्ट में संघ सरकार द्वारा वैज्ञानिक प्रगति के साथ मेल खाती निगरानी की आवश्यकता की बात कही गई है. एमी गुटमैन कहती हैं कि समिति जिम्मेदारीपूर्ण संरक्षण के सिद्धांत के बारे में बहुत गंभीर है, "हम बच्चों के, भावी पीढ़ियों के, पर्यावरण के और उन मौजूदा और भावी हितों के संरक्षक हैं, जिन्हें प्रक्रिया के तहत नुमाइंदगी नहीं मिल पाती. यह जिम्मेदाराना संरक्षण कृत्रिम जीवविज्ञान के सरोकारों और संभावनाओं के लिए बहुत संगत है."

इस सिलसिले में समिति ने कृत्रिम जीवविज्ञान के उत्पादों को लाइसेंस मुहैया करने और विज्ञान की इस शाखा के लिए पैसा लगाए जाने में संघीय विभागों में बेहतर सहयोग का आग्रह किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कृत्रिम जीवविज्ञान से उठने वाले नैतिक मुद्दों पर युवा शोधकर्ताओं, इंजीनियरों और क्षेत्र से जुड़े अन्य लोगों के लिए शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए.

लेकिन व्हाइट हाउस द्वारा उठाए गए इस कदम की आलोचनाओं का सिलसिला यहीं समाप्त हो जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती.

रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वाशिंगटन

संपादन: महेश झा