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फुटबॉल का विकलांग खिलाड़ी भारत

३ जनवरी २०११

कतर में 10 जनवरी से एशियन कप फुटबॉल शुरू हो रहा है. 27 साल बाद भारतीय टीम भी टूर्नामेंट में पहुंची है लेकिन उससे उम्मीदें कम ही हैं. नवंबर में खेले गए मैचों में भारत इराक जैसी टीम से हार गया. तीन मैचों में 17 गोल खाए.

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तस्वीर: DW

1984 के बाद यह पहला मौका है जब भारतीय टीम ने एशियन कप के लिए क्वालिफाई किया है. कतर की राजधानी दोहा में खेले जाने वाले एशियन कप में टीम पहुंच तो गई है लेकिन आगे का रास्ता बेहद मुश्किल है. भारत मजबूत टीमों के साथ ग्रुप सी में है. यहां वर्ल्ड कप खेलने वाली दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमें हैं. ऐसे में टीम और कोच बॉबी हॉटन की कोशिश कम से कम गोल खाकर शर्मनाक हार टालने की होगी. भारत का पहला ही मैच 10 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया से है.

हाल के खराब प्रदर्शन के चलते भारतीय टीम से ऐसी कमतर अपेक्षाएं की जा रही हैं. दो ही महीने पहले कप्तान बाइचुंग भूटिया की टीम तीन बड़ी हार देख चुकी है. नवंबर में इराक ने भारत को 2-0 से हराया फिर कुवैत ने 9-1 से पीटा और रही सही कसर यूएई ने पांच गोल से हराकर पूरी कर दी. 18 नवंबर को यूएई के खिलाफ खेले गए मैच में भारतीय खेमे की कम तैयारियां साफ झलकीं.

कोच हॉटन भी मानते हैं कि तैयारियां कमजोर हैं. वह कहते हैं, ''मुझे नहीं पता कि सच्चाई क्या है. अब हम अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में 144वें स्थान पर हैं. हमारा मुकाबला वर्ल्ड कप खेलने वाले ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया से है.''

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कोलकाता में जर्मन फुटबॉल लीग बुंडेसलीगा का टीमतस्वीर: DW

कभी चीन और उज्बेकिस्तान के कोच रह चुके हॉटन को पद से जाने की आशंका भी है. हालांकि उनका कॉन्ट्रैक्ट 2013 तक है लेकिर कतर का टूर्नामेंट निर्णायक साबित होगा. वह कहते हैं, ''आपको सच का सामना करना होगा. अगर भारत एशियन कप से बिना अंक लिए बाहर हो जाता है तो कोच को हटाने के लिए हल्ला हो जाएगा. कई बार फैसले आपके हाथ से बाहर होते हैं.''

यह बात दुनिया में बड़ी हैरानी से देखी जाती है कि सवा अरब की आबादी और नौजवानों की फौज वाला भारत अच्छी फुटबॉल क्यों नहीं खेल पाता. फुटबॉल वैसे तो देश के कई हिस्सों में बड़ी तन्यमयता से खेली जाती है लेकिन चयनकर्ता या फुटबॉल संघ के अधिकारी इन दूर दराज के इलाकों तक जाकर प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को खोजने की जहमत नहीं उठा पाते हैं. उन्हें दिल्ली और कोलकाता या अन्य बड़े शहरों में वातानुकूलित कमरों में बैठक करना बहुत अच्छा लगता है. उन्हें लगता है कि अच्छे खिलाड़ी खुद की उनके आंखों के सामने आकर कहेंगे, कृपया मुझे टीम में ले लीजिए, मैं अच्छा खेलता हूं.

यही वजह है कि 1960 के स्वर्णिम दौर के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फुटबॉल खत्म हो गई. भारत 1951 और 1962 में एशियन गोल्ड मेडल जीत चुका है. 1956 में मेलबर्न में ओलंपिक खेलों में भारत सेमीफाइनल तक पहुंचा. 2011 में वह 144वें स्थान पर है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल

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