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उम्मीद की उड़ान महाश्वेता देवी

२७ जनवरी २०१३

पद्म श्री, पद्म विभूषण, मेगससे और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानों से नवाजी गईं भारत की प्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी बांग्ला लिखती हैं, पर उनके शब्दों की गूंज पूरे हिन्दुस्तान में सुनाई देती है.

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तस्वीर: Jasvinder Sehgal

महाश्वेता देवी ने इस बार जयपुर में चल रहे साहित्य सम्मलेन का उद्घाटन किया और अपने बेबाक भाषण से लोगों को झकझोरा. माओवादियों को भी सपने देखने के अधिकार के उनके बयान ने सामने मौजूद नेताओं को भी सोचने पर मजबूर किया. राजस्थान के राज्यपाल और मुख्यमंत्री की मौजूदगी के बावजूद उन्होंने अपनी इस बात को जोरदार तरीके से रखा और हर किसी को जीने का अधिकार देने की पुरजोर वकालत की.

2006 में फ्रैंकफर्ट में हुए पुस्तक सम्मलेन में भी उन्होंने दर्शकों विशेषकर भारतीयों को भावुक कर दिया. लेखिका ने राज कपूर की फिल्म के एक गाने, "मेरा जूता है जापानी, पतलून इंगलिश्तानी, सर पर लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी" का उदाहरण दिया और कहा कि तमाम कठिनाइयों के बावजूद मुझे यही भारत पसंद है क्योंकि यह मेरा अपना देश है.

समाज सुधारक भी

महाश्वेता देवी अपने शुरुआती जीवन की चर्चा करते हुए कहती हैं कि उन्होंने शांति निकेतन में अपनी पढाई की जहां उन्हें जीवन को सही रूप में जीने का तरीका सिखाया गया. वे बताती हैं कि समाज सेवा का गुण एक आदत के रूप में यहीं विकसित हुआ. अंग्रेज सरकार को याद करते हुए वह कहती है कि उसने कुछ जातियों को ही अपराधियों की संज्ञा दे डाली थी और यहां तक कि उनके साथ एक अपराधी की तरह व्यवहार और भेदभाव किया जाता था.

महाश्वेता देवी ने ऐसी ही जातियों को उनके हक दिलाने का प्रयास किया और आज भी उनके हितों के लिए संघर्षरत हैं. वह सवाल करती हैं कि जन्म के साथ ही क्या कोई अपराधी हो सकता है, कभी नहीं. ऐसे लोगों को उनकी पहचान दिलाने के साथ साथ शिक्षा पीने का पानी, स्वास्थ, बिजली, सड़क और विकास जैसे मुद्दों पर भी वे कार्य कर रहीं हैं. वह बताती हैं कि इन जातियों ने खुद भी विकास का बीड़ा उठाया और मुख्य धारा से जुड़ने की ललक उन्हें परिवर्तन की राह पर ला रही है.

Indien Literaturfestival 2013 Jaipur Autorin Mahashweta Devi
90 साल की उम्र में भी जारी है संघर्षतस्वीर: Jasvinder Sehgal

टैगोर से प्रभावित

महाश्वेता देवी को तीन साल तक शांति निकेतन में गुरुदेव रबींद्र नाथ टैगोर के साथ रहने का मौका मिला और यहीं से जिंदगी ने रास्ता बदलना शुरू कर दिया. वह बताती हैं कि किसी भी समस्या से कभी भी न घबराने की प्रेरणा भी उन्हें यहीं मिली. शांति निकेतन की परम्पराओं ने उन्हें नए विचार दिए कि कैसे समाज का भला किया जा सकता है.

यदि आज टैगोर उनसे भारत का हाल पूछे तो वो उन्हें क्या बतायेंगी, इस सवाल के जवाब में महाश्वेता देवी कहती हैं कि आज तो अंग्रेजों के जमाने से भी बुरा हाल है. जागरण हो रहा है और भारत सुधरने की कोशिश कर रहा है. सूचना क्रांति को ही सिर्फ विकास का अकेला आधार न मानते हुए वे कहती हैं कि यदि विकास करना है तो बुनियादी सुविधाएं जैसे पानी, शिक्षा, सड़कें, स्वस्थ्य सेवाएं सभी नागरिकों तक पहुंचानी होंगी. आज भी देश के कई आदिवासी और ग्रामीण इलाके विकास की हद से बहुत दूर हैं.

मजदूरों की बदहाली

महाश्वेता देवी दूसरी जगहों पर जाकर मजदूरी करने वाले लोगों की हालत से सन्तुष्ट नहीं हैं. कहती हैं कि आज भी कई जातियां ऐसी हैं जिन के पास रहने को घर तक नहीं है और तो और उन के पास अपनी पहचान तक नहीं है. बंधुआ मजदूर आज भी हैं और दादा का लिया पैसा आज भी पोता चुकाने का प्रयास कर रहा है. सूदखोर आज भी अशिक्षा का फायदा उठाते हुए मालामाल हो रहे हैं. आए दिन विस्थापित होने वाली जातियों की समस्याएं अत्यंत विकराल हैं, इतनी कि आजादी बेमानी सी लगती है.उन्हें इस बात का अफसोस है कि देश के पढ़े लिखे लोग भी आज तक ऐसे लोगों के हक में आवाज उठाने की जहमत नहीं करते.

Rabindranath Tagore
तस्वीर: picture-alliance/dpa

महिलाओं की स्थिति

महाश्वेता देवी महिलाओं की वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हैं. कहती हैं कि ग्रामीण भारत की महिला तो पूरा घर चलाती है. खेत में भी काम

करती है और घर में भी. महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों के बारे में वह कहती हैं, कि नारी को खुद ही आगे होना होगा. उनके मुताबिक दिल्ली बलात्कार कांड जैसी घटनाओं से महिलाओं का ही नहीं वरन पुरुषों का भी अपमान होता है.

जारी है कलम का सफर

उम्र ज्यादा होने की वजह से महाश्वेता देवी आज कल ज्यादा नहीं लिख पा रही हैं. नब्बे साल की उम्र के बावजूद आज भी उनके हौसले में कई कमी नहीं है. इन दिनों वह कुछ समाचार पत्रों और अपने पिता द्वारा शुरू की गयी त्रैमासिक पत्रिका 'वर्तिका' के लिए जरूर लिखती हैं. आदिवासियों की समस्याओं पर लिखना उन्हें सबसे ज्यादा अच्छा लगता है.

रिपोर्ट: जसविंदर सहगल, जयपुर

संपादन: ओ सिंह

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