1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

गंदी बस्तियों की कड़वी सच्चाई

७ मार्च २०१२

गगनचुंबी इमारतें, चौड़ी सड़कें, पांच सितारा होटल और पूरी रात जवान रहने वाला शहर है मुंबई. हर किसी को अपनी चकाचौंध से लुभाकर पास बुलाता है यह शहर. लेकिन इस शहर का एक और चेहरा है जो स्याह है.

https://p.dw.com/p/14GFI
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

वह चुपचाप अपना जीवन जीता है और चाहता है कि चकाचौंध के पीछे छुपकर ही जीता-चलता रहे. यह है मुंबई में जगह जगह फैली विशाल गंदी बस्तियां या चाल. इन बस्तियों में रहने वाले लोगों के जीवन और जीवन से जुड़े हर पहलू को एक किताब ने छुआ है. बिहाइंड द ब्युटीफुल फॉर एवर नाम की इस किताब को लिखा है अमेरिकी पत्रकार कैथरीन बो ने. किताब में मंजू नाम की 23 वर्षीय युवती के संघर्ष के माध्यम से अन्नावाड़ी चाल के जीवन को दिखाया गया है. यहां का जीवन शराब, खाने के लिए संघर्ष, हालात से तंग आकर आए दिन मौत को गले लगाते लोगों के आस पास घूमता है. किताब की मुख्य पात्र मंजू का जीवन भी इसी संघर्ष से रोजाना दो-चार होता है. मंजू अपनी मां आशा के रहस्यमय जीवन को देखते हुए बड़ी होती है. वह अपनी मां को फायदों के लिए भ्रष्ट पुलिस वालों और कुटिल राजनेताओं से रहस्यमय संबध रखते देखती है. उसके पिता हर समय शराब में डूबे रहते हैं और उसका खास दोस्त जहर खाकर जान दे देता है.

कहानी नहीं सच्चाई है

मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के पास और पांच सितारा होटल हयात रीजेंसी के पीछे बसी अन्नावाड़ी में रहने वाली मंजू कहती है " मैने वह किताब पढ़ी है और वह मुझे पसंद भी आई. पढ़ते-पढ़ते मैं रो भी पढ़ी. यह कहानी नहीं सच्चाई है. हर कोई अन्नावाड़ी के बारे मे जानता है. अगर में कहूं कि ये मेरे परिवार के बारे मे नहीं किसी और के बारे में है, पर किसी को भी इस बारे में बातें करने का मौका क्यों दिया जाए."

मंजू एक स्कूल में पांच घंटे बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं. वह खुद अंग्रेजी भाषा में एमए कर रही हैं. मंजू और उसी की तरह दूसरे लोग कैथरीन बो पर बेहद विश्वास करते हैं. कैथरीन 2007 से 2011 के बीच अन्नावाड़ी के लगातार संपर्क में रही थी.

मंजू के अनुसार उसकी मां के बारे में लिखी गई बातें संवेदनशील कर देने वाली हैं. लेकिन वह संकोच के साथ उन्हें स्वीकार भी कर लेती है. उसके विवाहेतर संबंध और भ्रष्टाचार बताता है कि जीवन यहां भी है. वह अकेली मां है और उसके पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था.

मंजू कहती है कि उसकी मां जल्द ही उसके लिए एक लड़का देख कर उसकी शादी कर देगी. लेकिन बाद में भी वह स्कूल में पढ़ाना जारी रखेगी. वह स्कूल की प्रिंसिपल बनना चाहती है. उसका सपना है कि एक दिन वह गोवा के बीच पर घूमे.

इस किताब का अन्नावाड़ी के 3 हजार निवासियों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा या बुरा यह कहना तो मुश्किल है. लेकिन किताब के छपने होने के बाद दुनिया भर से ढेरों प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.

उधर मंजू की मां आशा इस सब से परेशान नहीं है. खूबसूरत साड़ी और सोने के गहने पहने परिवार झोपड़ी के फर्श पर बैठा है. आशा कहती है" इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारा जीवन किताब में लिखी गई बातों से मिलता है. पति के सहयोग के बिना एक अकेली महिला अपने परिवार को पालने के लिए जो कुछ कर सकती है मैने किया." यह कहानी उस महिला की भी है जो अपने तीन बच्चों के साथ तंग बस्ती में आकर रहती है.

आशा को सिर्फ एक ही बात परेशान करती है कि कोई किताब में छपी बातों का गलत इस्तेमाल नहीं कर ले क्योंकि कुछ ही दिनों में उनकी बेटी की शादी होने वाली है. हां यदि कोई मदद करना चाहता है तो अच्छी बात है.

किताब में आशा और उसके बच्चों के अलावा फातिमा का भी उल्लेख है. आग में जलने से उसकी मौत हो गई थी. उसके पड़ोसी हुसैन पर उसकी मौत का आरोप लगाया गया था. क्योंकि दोनी की झोपड़ियों के बीच की दीवार को लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ था. वे बताते हैं कि उसके माता पिता और भाई अब्दुल कोर्ट केस का सामना कर रहे हैं. अदालती मामलो में देरी हो रही है और पुलिस रिश्वत मांगती है. उनका पूरा परिवार कैथरीन के साथ बैठकर चाय काफी पीता था. उसके सामने ही फातिमा वाली घटना हुई थी. वो किताब के बारे में जानते हैं. कैथरीन ने बताया था कि वह लेखक है और उनके जीवन पर किताब लिख रही हैं.

किताब का नाम बिहाइंड द ब्युटिफुल फॉर एवर रखने के पीछे मंशा स्लम शब्द को छुपाने की थी. क्योंकि स्लम शब्द से इसकी तुलना किताब और फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर से की जाने लगती.

अन्नावाड़ी के निवासियों को यह चिंता भी थी कि फिर मीडिया और फिल्म वालों की आवाजाही बढ़ जाएगी. जैसा ऑस्कर अवार्ड जीत चुकी फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर के बाद हुआ था. पर 18 वर्षीय अख्तर मानते हैं कि कैथरीन की किताब उनका जीवन बदल सकती है.

अन्नावाड़ी में रहने वाले पुरुष पन्नी बीनने, पत्थर तोड़ने और मजदूरी का काम करते हैं. जबकि महिलाएं घरों के काम के अलावा बच्चों को पालती हैं. अख्तर के अनुसार इस किताब को स्थानीय राजनेता नहीं केवल विदेशी पढ़ेंगे.

पत्रकारिता के लिए पुलित्जर पुरस्कार जीत चुकी कैथरीन का मानना है कि अन्नावाड़ी और इस तरह की दूसरी बस्तियों को इस तरह के प्रचार से काफी लाभ हो सकता है.

मंजू के 18 वर्षीय भाई गणेश कहते हैं कि वह उनके और परिवार के लिए डर महसूस करते हैं क्यों कि उनके घर के बारे मे में बाहर की दुनिया जान चुकी है. कहते हैं, "मेरे लिए निजी बातें सार्वजनिक होना ठीक नहीं हैं. "

रिपोर्टः एएफपी / जितेन्द्र व्यास

संपादनः एन रंजन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी