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गुजरात दंगों के 10 साल

१ मार्च २०१२

2002 में हुए गुजरात दंगों का भारत पर गहरा असर पड़ा. 1992 के दंगों के ठीक 10 साल बाद गुजरात के दंगाइयों ने देश को धार्मिक आतंकवाद की राह पर ढकेला. यह खून से सना धार्मिक आतंकवाद का क्रूर और डरावना चेहरा लगता है.

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तस्वीर: AP

27 फरवरी 2002. एक दशक पहले बंसत के फूलों का इंतजार कर रहे भारत का गुजरात राज्य नफरत की आंधी में झुलस गया. शुरुआत साबरमती एक्सप्रेस से हुई. गोधरा के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे को आग लगा दी गई. डिब्बे में अयोध्या से लौट रहे श्रद्धालु थे. 54 लोग मारे गए.
ट्रेन में आग क्यों लगी, तत्काल इसका पता नहीं लग सका. लेकिन अफवाहें उड़ीं कि बोगी को दूसरे समुदाय के लोगों ने जला दिया. बस फिर क्या था. गुजरात में देखते ही देखते दंगे भड़क उठे. अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की खोज खोजकर हत्या की गई. उनके घर, दुकानें सब जला दी गईं. धर्म के नाम पर अंधे हो चुके दंगाइयों की हैवानियत महिलाओं और बच्चों पर भी टूटी. उनसे बलात्कार किया गया. हालांकि कई शहरों में बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्याएं भी हुईं.
तीन दिन तक चले दंगों के दौरान राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी सख्त लहजा नहीं अपनाया. लाशें गिरती रहीं लेकिन गुजरात पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. 790 मुसलमान और 254 हिंदू मारे गए. सैकड़ों नाम अब भी लापता लोगों की सूची में हैं.

गुजरात दंगों से जुड़ी डॉयचे वेले की विशेष रिपोर्टें:

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