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नीली रौशनी से फूल खिलाते हैं पौधे

२८ मई २०१२

बै, नी, आ, ह, पी, ना, ला, यानी बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल. विज्ञान कहता है कि सूरज के प्रकाश में यह सात रंग होते हैं. नई खोज में पता चला है कि पौधे इसी रौशनी से नीले रंग को सोख कर अपने फूल खिलाते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

सर्दियों के बाद जब बंसत की बयार बहती है, तो पेड़-पौधों खिलखिला उठते हैं. कई पेड़ों में नए हरे और मुलायम पत्ते आते हैं, तो फूलों में कलियां और कोपलें फूटने लगती हैं. दरअसल बंसत में दिन लंबे होने लगते हैं, बादल कम लगते हैं. जैसे तैसे सर्दियों काटने वाले पौधे लंबे इंतजार के बाद सूर्य की रोशनी का आनंद उठाते हैं.

विज्ञान की मशहूर पत्रिका साइंस के मुताबिक सूर्य की रौशनी में शामिल नीली किरणें जब पौधे पर पड़ती हैं तो एक जटिल जैव रासायनिक क्रिया होती है. पौधे का एक खास प्रोटीन नीले रंग के प्रति बहुत संवेदनशील होता है. यह प्रोटीन फूल खिलाने वाले जीन को प्रभावित करता है. 

FKF1 नाम का प्रोटीन लंबे होते दिनों का अंदाजा लगता है. CO नाम का एक अन्य प्रोटीन फूल खिलाने वाले जीनों को सक्रिय करने की भूमिका निभाता है.

यह शोध सिएटल की यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के वनस्पति विज्ञानियों ने किया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सूर्य की रौशनी के नीले रंग और दिन की बढ़ती लंबाई से पौधे आस पास के माहौल का सटीक अनुमान लगा लेते हैं. बसंत की शुरुआत में जब तितली और भंवरे बहुत सक्रिय हो जाते हैं, तब ही फूल खिलते हैं. यानी पौधे जानते हैं कि तितली और भंवरे उनके बीजों को दूर दूर तक फैलाएंगे.

शोध के सह लेखक ताकातो इमायजुमी को लगता है कि इस प्रक्रिया का उपयोग कर इंसान अपने लिए ज्यादा अनाज भी उगा सकता है. वह कहते हैं, "हम एक ही सीजन में दो या तीन बार चीजों को उगा सकते हैं." रिसर्चरों को लग रहा है कि अगर कृत्रिम ढंग से बसंत का माहौल बनाया जाए तो शायद पौधे जल्द बड़े होने लगें.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ईशा भाटिया

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