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सोनिया की बीमारी यानी राहुल की तैयारी

६ अगस्त २०११

कांग्रेस भ्रष्टाचार, घोटालों और महंगाई से लड़ रही है. कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी बीमारी से. हर तरफ से जारी इन लड़ाइयों में कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी के लिए जल्दी गद्दी पर बैठने के संकेत साफ हैं.

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तस्वीर: UNI

सोनिया गांधी ने ऑपरेशन के लिए अमेरिका जाने से पहले पार्टी का कामकाज चार लोगों की एक टीम को सौंपा. उस टीम में उनके 41 साल के सुपुत्र राहुल गांधी भी शामिल हैं. राहुल गांधी को इस टीम में शामिल करना काफी जानकार लोगों के लिए हैरतअंगेज रहा क्योंकि उनसे सीनियर और अनुभवी कई नेता इस जिम्मेदारी के लिए बेहतर विकल्प हो सकते थे.

चक्का चलता है

सोनिया गांधी को क्या बीमारी है और उसकी गंभीरता क्या है, यह छिपाकर रखा गया है. लेकिन यह माना जा रहा है कि 64 साल की सोनिया गांधी कई हफ्तों तक राजनीति और शायद भारत से भी दूर रहेंगी. अगर कुछ मीडिया रिपोर्ट में कही गई सोनिया गांधी को कैंसर होने की बात सच निकली तो पार्टी और राजनीति से उनकी जुदाई और ज्यादा लंबी हो सकती है. हालांकि कांग्रेस ने बीते शुक्रवार को कहा कि उनका सफल ऑपरेशन हो चुका है और वह जल्द लौटेंगी.

Flash-Galerie Rajiv Gandhi hier Sonia und Rahul Gandhi
तस्वीर: APImages

लेकिन राहुल को जिम्मेदारी देना इस बात का संकेत हो सकता है कि अब उनका "राजतिलक" किया जा सकता है. राजनीतिक विश्लेषक महेश रंगराजन कहते हैं, "उन्हें बहुत अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है ताकि चक्का चलता रहे. यह राहुल का दायरा बढ़ाने की कोशिश है. एक दिन तो उन्हें प्रधानमंत्री बनना ही है और यह उस प्रक्रिया का ही हिस्सा है. यह पार्टी को संकेत है कि प्रक्रिया जारी है."

मां की दिखाई राह पर

कांग्रेस और गांधी परिवार को विपक्ष का यह ताना झेलना पड़ता है कि भारत पर इटली में जन्मा नेता राज नहीं कर सकता. इसी वजह से 2004 में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया था. उसके बाद से वह पर्दे के पीछे ही रही हैं. हालांकि आलोचक कहते हैं कि असल में वह पर्दे के पीछे से राज कर रही हैं. उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2009 में दोबारा चुनाव जीता.

इस बात में कोई दो राय नहीं कि सोनिया गांधी सरकार की नीतियों को प्रभावित करती हैं. उन्होंने खाद्य सुरक्षा बिल जैसी कई नीतियों को जोर लगाकर सरकारी नीतियों का हिस्सा बनवाया. राहुल ने कई बार जाहिर किया है कि वह अपनी मां के बनाए रास्ते पर ही आगे बढ़ेंगे. संसद में बहसों के दौरान उनके भाषण और यूपी व बिहार की रैलियों के दौरान उनके बयान भी यही संकेत देते रहे हैं.

दब गए दिग्गज

सवाल यह उठ रहा है कि कांग्रेस के सारे दिग्गज कहां चले गए हैं. जिस चौकड़ी को "सोनिया की पादुकाएं" सौंपी गई हैं उनमें राहुल के अलावा पार्टी महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजनीतिक सचिव अहमद पटेल और रक्षा मंत्री एके एंटनी का नाम है. ये सभी सोनिया गांधी के बेहद करीबी लोग हैं.

कैबिनेट वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी जैसे दिग्गज को नजरअंदाज कर दिया गया जबकि अक्सर संकट के वक्त मुखर्जी ही पार्टी के तारणहार बनते हैं. कई बार तो लोग कहते हैं कि वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी ज्यादा ताकतवर हैं. गृह मंत्री पी चिदंबरम का भी किसी ने नाम नहीं लिया जबकि लोग कहते हैं कि इस वक्त राहुल गांधी के अलावा अगर कोई और कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन सकता है तो वह चिदंबरम हैं. अखबार मेल टुडे ने अपने पहले पन्ने पर लिखा, "सबसे ज्यादा चकराने वाली बात यह है कि जो लोग देश चला रहे हैं उन्हें पार्टी चलाने लायक नहीं समझा गया."

Flash-Galerie Rajiv Gandhi Beerdigung Witwe und Kinder
तस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत में गांधी परिवार को राजपरिवार की तरह देखा जाता है और राहुल गांधी लंबे समय से युवराज कहे जाते रहे हैं. अनुमान लगाने वाले तो कहते हैं कि राहुल 2014 के चुनाव से पहले ही मनमोहन सिंह से सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले लेंगे.

जमीनी तैयारी जारी

अब तक तो ऐसा ही दिखाया गया है कि राहुल खुद को सरकार के कामकाज से दूर रखे हुए हैं. उनका ज्यादा ध्यान पार्टी में नौजवानों को संगठित करने और देशभर में घूम घूम कर किसानों और गरीबों के हकों की बात करने में ही है. अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने कई बार अलग अलग बातों के लिए सुर्खियां बटोरी हैं. मसलन कभी वह किसी दलित के घर खाना खाने बैठ गए. या कभी किसी चारपाई पर ही रात गुजारने को लेट गए. उनके राजनीतिक विरोधी इन सब बातों को स्टंट से ज्यादा की तवज्जो नहीं देते लेकिन जानकार कहते हैं कि राहुल 2014 के चुनाव के लिए पूरे जोर शोर से जमीनी तैयारी कर रहे हैं.

2014 से पहले राहुल गांधी को 2012 में भी एक इम्तिहान देना होगा. यूपी चुनाव में उनकी तैयारियों का दमखम सामने आ जाएगा. इसलिए पार्टी में अचानक उनका कद बढ़ा देना उस प्रक्रिया का ही हिस्सा माना जा रहा है जो उनकी ताजपोशी के लिए चल रही है. हालांकि उनकी पार्टी के लोग खुलकर ऐसा नहीं बोल रहे हैं, लेकिन वे भी समझ तो रहे हैं. एक वरिष्ठ नेता से जब पूछा गया कि क्या चौकड़ी में शामिल होने से राहुल का कद बढ़ा है, तो उन्होंने कहा, "यह कोई साफ साफ कहने की बात थोड़े ही है."

राहुल गांधी के आलोचक कम नहीं हैं. किसी को उनमें अपनी दादी इंदिरा गाधी सा करिश्मा नहीं दिखता तो कोई उन्हें अपने पिता राजीव गांधी की तुलना में कम संजीदा बताता है. सोनिया गांधी की राजनीतिक समझ से उनकी समझ की तुलना भी होती है. पर इससे क्या कुछ बदलता है? कांग्रेस राज करेगी तो प्रधानमंत्री कोई गांधी होगा, ऐसा मानने से लोगों को ज्यादा ऐतराज दिखता नहीं. लेकिन इतिहास कहता है कि किसी भी गांधी के लिए कुर्सी पर बैठना आसान नहीं रहा. राहुल गांधी अपवाद तो नहीं हैं.

रिपोर्टः रॉयटर्स/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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