गवार से अमीर होते भारतीय किसान
२८ मई २०१२अमेरिका में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है क्योंकि तेल उद्योग को इसकी जरूरत है. जोधपुर, राजस्थान में ग्वार पॉवडर का व्यापार करने वाली कंपनी भंसाली इंटरनेशल के जीतेश भंसाली ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि "पिछले डेढ़ साल में इस उत्पाद की मांग पांच गुना ज्यादा बढ़ी है." कारण है शेल गैस, यानी पत्थरों के बीच से मिलने वाली गैस का बढ़ता उपयोग.
अमेरिकी कंपनियां जो पत्थरों के बीच से तेल और ऊर्जा निकालने के काम में लगी हुई हैं उन्हें ग्वार या क्लस्टर बीन थोक में चाहिए. इस मांग ने उन छोटे किसानों की चांदी कर दी है जो दुनिया की अस्सी फीसदी गवार उगाते हैं. राजस्थान की रेतीली जमीन में गवार उगाने वाले किसान शिवलाल कहते हैं, "गवार ने मेरी दुनिया बदल दी है. अब मेरा घर पक्का है और मेरे पास कलर टीवी भी है. अगले साल मैं छत पर भी गवार उगाने की कोशिश करूंगा." गवार से उन्हें इतना फायदा हुआ कि उनकी सालाना आय पांच गुना बढ़ कर तीन लाख रुपये हो गई. गवार का गोंद सॉस और आइसक्रीम बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है. इसे जमीन से गैस निकालने के हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग तरीके में इस्तेमाल किया जाता है.
फ्रैंकिंग तकनीक को ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांतिकारी तकनीक बताया जा रहा है. एक ऐसी तकनीक जो ऊर्जा का भूराजनीतिक नक्शा बदल देंगी. उत्तरी अमेरिका में गैस सप्लाई बढ़ जाएगी.
इस तकनीक में चाहिए गवार गोंद (गवार गम). इस कारण अब इसे काला सोना कहा जाने लगा है. जोधपुर में गवार के बीज 305 रुपया किलो बिक रहे हैं. यह कीमत साल भर पहले से 10 गुना ज्यादा है. सूर्यनगरी में 11 साल से गवार का पॉवडर बेच रही कंपनी भंसाली इंटरनेशनल के जीतेश भंसाली ने हमें बताया कि "डेढ़ साल के अंदर उनके उत्पादों की मांग पांच गुना बढ़ी है. साल भर पहले एक टन गवार पॉवडर की कीमत 15-20 लाख रूपये थी वहीं अब इसकी कीमत ढाई करोड़ प्रति टन हो गई है."
टेक्सास में वेस्ट गवार टेक्सास के वेड कोवान कहते हैं, "दुनिया ने कभी नहीं सोचा था कि उसे गवार की इतनी ज्यादा जरूरत होगी."
भारत में करीब 10 लाख टन गवार सालाना पैदा होती है. उसने 2011 में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में चार लाख टन गवार उत्पादों का निर्यात किया जिसमें गोंद भी शामिल था. क्योंकि फली का निर्यात करने पर रोक है.
अमेरिकी कंपनियों को इस साल तीन लाख गवार की जरूरत है. पिछले साल ऊर्जा निवेश बैंकिंग कंपनी सिमन्स एंड कंपनी इंटरनेशनल को गैस का खनन बंद कर देना पड़ा क्योंकि फ्रैंकिंग के लिए जरूरी गवार गम कम पड़ गया था. राजस्थान के चुरु जिले में किसान श्यामलाल ने बताया, "पिछले साल अच्छी क्वालिटी के गवार बीज 60 रुपये किलो मिल जाते थे अब व्यापारी इसी बीज के लिए 500 रुपये प्रति किलो की मांग कर रहे हैं.
गवार गम पत्थर में डाले जाने वाले पदार्थ को चिपचिपा कर देते हैं. पिछले साल अमेरिका ने 33,800 मेट्रिक टन गवार गम भारत से खरीदा था."
हर कुएं के लिए नौ टन गवार गम लगता है. कई कंपनियां एक कुएं में कई बार फ्रैंकिंग करती हैं इसलिए गवार गम की जरूरत भी ज्यादा होती है.
इसका सीधा असर भारत में गवार की मांग पर हुआ है. यह इतनी तेजी से बढ़ी है कि स्थानीय बाजार ने मार्च के अंत में गवार का व्यापार ही बंद कर दिया. इसकी मामले की अब जांच हो रही है.
भारत में गवार गम के सबसे बड़े उत्पादक विकास डबल्यूएसपी एक लाख किसानों को 90 करोड़ रुपये की कीमत के बीज मुफ्त दे रहे हैं और उन्हें रिटर्न की गारंटी. कुछ किसानों ने पहले ही बीज बो दिए हैं. आने वाले सीजन में मांग और बढ़ने की उम्मीद है.
भारत में टेक्सटाइल, मच्छर मारने के लिए इस्तेमाल होने वाली अगरबत्ती और गाढ़ापन बढ़ाने के लिए गवार गम का इस्तेमाल किया जाता है. एक समय में यूरोप में खाद्य उद्योग में इस्तेमाल होने वाले गवार की कीमत अमेरिका ने इतनी बढ़ा दी है कि किसान इसकी खेती के लिए लालायित हो जाएं. एक और फसल जो अमेरिका और बाजारवाद की बलि चढ़ी.
रिपोर्टः आभा मोंढे (रॉयटर्स)
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन