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पांच साल बाद भी नहीं माना पाकिस्तान

२५ नवम्बर २०१३

पांच साल पहले पाकिस्तान के आतंकवादियों ने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में तबाही मचा दी थी. आतंक से भरे तीन दिनों में 160 लोगों की जान गई. पाकिस्तान आज भी इस मसले का सामना करने को तैयार नहीं है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

मुंबई हमलों के तुरंत बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी उन पर मुकदमा शुरू नहीं हुआ है. ये संदिग्ध अब भी हिरासत में हैं. कथित रुप से "सबूतों के अभाव" के कारण मुकदमे की कार्रवाई अब तक शुरू नहीं हुई. 2013 में अमेरिकी नागरिक डेविड कोलमन हेडली को इन हमलों में मदद करने के मुकदमें में शिकागो की संघीय अदालत ने 35 साल कैद की सजा सुनाई. मुंबई हमलों में जिंदा पकड़े गए इकलौते आतंकवादी अजमल आमिर कसाब पर भारत में मुकदमा चला. विशेष अदालत ने उसे भारत के खिलाफ "युद्ध छेड़ने का दोषी करार दिया." दोष साबित होने पर उसे मौत की सजा मिली और नवंबर 2012 में उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया.

बीते पांच सालों में भारत और अमेरिका के जांच अधिकारी हमले का मकसद पता करने की दिशा में काफी आगे गए. हेडली और कसाब के अपराध स्वीकार करने के कारण इसमें काफी मदद मिली. दोनों ने पाकिस्तान के इस्लामी संगठन लश्कर ए तैयबा को इसका दोषी बताया. लश्कर ए तैयबा लाहौर से काम करता है और इसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से करीबी संबंध होने की बात कही जाती है. यह संगठन कई सालों से भारत प्रशासित कश्मीर में हमले करता रहा है. अमेरिका ने 2001 में इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया.

Hafiz Mohammad Saeed
हाफिज सईदतस्वीर: picture-alliance/dpa

जांच में दिलचस्पी नहीं

पाकिस्तान अब तक जांच में कोई मदद करने में नाकाम रहा है. पाकिस्तानी इतिहासकार अरशद महमूद ने डीडब्ल्यू से कहा कि पाकिस्तान का यह दावा कि भारत ने संदिग्धों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं दिए, बेबुनियाद है. अरशद महमूद के मुताबिक, "साफ है कि पाकिस्तान हमलों से जुड़ी कोई जांच नहीं चाहता. यह उसके लिए अपमानजनक होगा." हालांकि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के राजनीतिक कार्यकर्ता तौकीर गिलानी का मानना है कि जांच में सहयोग न करने के पीछे सिर्फ अपना चेहरा बचाना ही वजह नहीं है, "मेरा दृढ़ रूप से मानना है कि लश्कर ए तैयबा जैसे इस्लामी संगठनों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी समर्थन देती है. इस गुट के खिलाफ कदम उठाना एक तरह से सरकार के घटकों के खिलाफ ही कदम उठाना होगा."

बीते पांच सालों में दोनों देशों के बीच बातचीत की कोशिश बहुत परवान नहीं चढ़ सकी है. भारतीय पत्रकार विनोद शर्मा मानते हैं कि 28 नवंबर 2008 की घटनाओं से एक बड़ा धक्का लगा, "जब यह साफ हो गया कि पाकिस्तान हमलों के पीछे छुपे लोगों को न्याय तक नहीं लाएगा तो अविश्वास और गहरा हो गया." अरशद महमूद की भी यही राय है. उनका कहना है कि भारत के लिए इस सदमे से तब तक उबर पाना संभव नहीं जब तक कि पाकिस्तान इसके लिए जिम्मदार लोगों को सजा न दिलाए. इसके साथ ही महमूद ने यह भी कहा, "और इसकी उम्मीद नहीं है."

मुश्किल बातचीत

विनोद शर्मा मानते हैं कि परमाणु ताकत वाले दो पड़ोसियों के बीच गतिरोध के लिए दोनों देशों का मीडिया भी जिम्मेदार है. उनका कहना है कि भारत पाकिस्तान का एक दूसरे पर आरोप लगाना बहुत आम बात हो गई है. शर्मा ने मीडिया की आलोचना करते हुए कहा, "इससे किसी का भला नहीं होगा. राजनीति बाचतीत पर आधारित होनी चाहिए, लेकिन दोनों देशों के मीडिया ने इसकी अनदेखी की है." हालांकि वह भविष्य में बेहतर आपसी रिश्तों को लेकर उम्मीद जताते हैं. शर्मा का कहना है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत से रिश्ते सुधारने के वादे पर सत्ता में आए हैं और भारत में इसे सकारात्मकरक रूप में देखा जा रहा है. उन्होंने कहा, "हम मानते हैं कि शरीफ का चुनाव भारत पाकिस्तान के सबंधों को सुधारने का बेहतरीन मौका है जो लंबे समय के बाद आया है. हालांकि यह इस पर निर्भर करेगा कि शरीफ खुद कितना जोर लगा पाते हैं."

विश्लेषक हालांकि इस पर संदेह जताते हैं, उनके मुताबिक चरमपंथियों को शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग से भी समर्थन मिल सकता है. रिश्तों में सुधार भारत पर भी निर्भर है जहां अगले साल आम चुनाव होने हैं. पाकिस्तान के साथ रिश्तों पर इसका क्या असर होगा यह कहना मुश्किल है. रायशुमारी में भारत की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी विपक्षी बीजेपी के उम्मीदवार के आगे पिछड़ती दिख रही है. ऐसी स्थिति में सरकार के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत की पेशकश की उम्मीद नहीं की जा सकती.

रिपोर्टः ग्रैहम लूकस/एनआर

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी