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डिप्रेशन का शिकार भारतीय

२२ अगस्त २०१३

बढ़ती महंगाई और अन्य आर्थिक, समाजिक समस्याओं के कारण भारत के लोगों में डिप्रेशन की समस्या तेजी से बढ़ रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक देश की करीब एक तिहाई जनता अवसाद का शिकार है.

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तस्वीर: Fotolia

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का सर्वे बताता है कि भारत में डिप्रेशन के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं. इस सर्वे के अनुसार भारत में करीब 36 प्रतिशत लोग गंभीर डिप्रेशन का शिकार हैं. मुंबई में संजीवनी अस्पताल से जुड़े मनोचिकित्सक डॉ पवन सोनार डिप्रेशन को एक ऐसी बीमारी बताते हैं जो कुछ रोगियों को आत्महत्या की ओर ले जाती है.

सबसे ज्यादा मरीज

भारत में आज डिप्रेशन दसवीं सबसे सामान्य बीमारी है. सर्वे के अनुसार भारत अन्य देशों की तुलना में डिप्रेशन से सबसे ज्यादा ग्रस्त है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 18 देशों में करीब 90 हजार लोगों का सर्वेक्षण किया. इससे यह पता चला कि भारत में सबसे ज्यादा, 36 फीसदी लोग मेजर डिप्रेसिव एपिसोड (एमडीई) का शिकार हैं. दूसरे नंबर पर यूरोपीय देश फ्रांस है जहां 32.3 फीसदी लोग इसके शिकार हैं. तीसरे नंबर पर मौजूद अमेरिका भी ज्यादा पीछे नहीं है, यहां मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर से ग्रस्त लोगों की संख्या 30.9 फीसदी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वे के मुताबिक इस सूची में सबसे नीचे है चीन है, जहां सिर्फ 12 प्रतिशत लोग इसके शिकार हैं.

मनोचिकत्सा से परहेज

डॉ विलास डोंगरे 30 वर्षों से मुंबई से लगे ठाणे में मनोरोगियों का इलाज कर रहे हैं. डॉ विलास कहते हैं, "आज भी लोग डिप्रेशन स्वीकार करने में संकोच करते हैं, जो स्थिति 30 साल पहले थी वह आज भी है." वे आगे कहते हैं कि मुंबई जैसे महानगरों में बढ़ते घरेलू तनाव, अत्यधिक व्यस्तता, मनमुताबिक काम का न होना या अपनी क्षमता पर संदेह जैसे कई कारण हैं जो लोगों को अवसाद का शिकार बनाते हैं. इसके बावजूद लोग इसे नजरंदाज करते हैं, ज्यादातर लोग डिप्रेशन को सामान्य उदासी की तरह ही देखते हैं. लोगों की यह उदासीनता कई बार काफी घातक हो जाती है.

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सामाजिक और आर्थिक परिवेश अवसाद का प्रमुख कारण.तस्वीर: Fotolia/ lichtmeister

महंगाई भी डिप्रेशन का कारण

लगातार बढती महंगाई ने भारत के एक बड़े वर्ग को डिप्रेशन का शिकार बनाया है. महंगाई से इस रोग का शिकार होने वालों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है. सब्जी विक्रेताओं और दुकानदारों से महिलाओं का वाद विवाद अब रोज की बात है. मनोवैज्ञानिक डॉ संजय भारद्वाज कहते हैं कि महंगाई के इस दौर में महिलाओं में डिप्रेशन के मामले लगातार बढ़े हैं. यह समस्या महानगर की महिलाओं में ज्यादा तेजी से पैर पसारती जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की 'इनवेस्टमेंट इन हेल्थ रिर्सच एंड डेवलपमेंट' नाम की एक रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गयी है कि आने वाले समय में विकासशील देशों में डिप्रेशन विकलांगता का प्रमुख कारण बन सकता है. एक अनुमान के अनुसार साल 2020 तक भारत में डिप्रेशन दूसरी सबसे आम बीमारी हो जायेगी और उस समय तक यह महिलाओं में सबसे आम बीमारी होगी.

बच्चे भी शिकार

ऐसा नहीं है कि डिप्रेशन सिर्फ बड़ी उम्र में होता है. डॉ पवन सोनार कहते हैं, "आज की तारीख में बच्चे भी डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं." डॉ सोनार इसके लिए वर्तमान जीवन शैली को जिम्मेदार मानते है. वे कहते हैं कि सामाजिक-पारिवारिक व्यस्था में हो रहे परिवर्तन के कारण बच्चे भी अवसाद के शिकार बन रहे हैं. डॉ विलास के अनुसार पढाई में अच्छा न कर पाना या घर में दो बच्चों के बीच तुलना भी बच्चों में डिप्रेशन का कारण बन सकता है. मां-बाप के आपसी संबंध ठीक न रहने से भी बच्चे डिप्रेशन में आ जाते हैं.

जी सकते हैं सामान्य जीवन

एक अनुमान के अनुसार डिप्रेशन के 15 प्रतिशत रोगी आत्महत्या कर लेते हैं. लेकिन समय पर मनोचिकित्सक की सलाह ली लाए तो बीमारी पर नियंत्रण संभव है. अब डिप्रेशन को कम करने वाली दवाइयां बाजार में उपलब्ध हैं. अगर शुरुआती दौर में ही बीमारी का पता चल जाए और विशेषज्ञों की निगरानी में दवा और काउंसलिंग हो तो बीमारी से मुक्त भी हुआ जा सकता है. व्यायाम को भी अवसादरोधी माना जाता है. मनोचिकित्सक डिप्रेशन रोगियों को नियमित रूप से टहलने या घूमने फिरने की सलाह देते हैं.

रिपोर्ट: विश्वरत्न, मुंबई

संपादनः आभा मोंढे

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